यही सवाल कर रहे हैं देशभर में रहने वाले मराठी। पाकिस्तानी टीम के सपोर्ट वाले शाहरुख के बयान को लेकर शिवसेना और एमएनएस ने भले मुंबई को 'जंग' का मैदान बना दिया है। लेकिन देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले महाराष्ट्रियन का मानना है कि ठाकरे परिवार का यह रवैया व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है। अगर वह शाहरुख की किसी बात से सहमत नहीं भी हैं, तो उन्हें ऐसा कर मराठियों को बदनाम करने का कोई हक नहीं है। पिछले चार सालों से दिल्ली में रह रहे साहिल जोशी का कहना है, जब मैं मुंबई छोड़कर दिल्ली आया, तो मुझे यहां भी अपनापन मिला। लेकिन अगर शिवसेना और एमएनएस इसी तरह की हरकत करते रहे तो वह मराठी मानुष को बदनाम करेंगे। शाहरुख को किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रखने का पूरा अधिकार है और सिर्फ उन्हें ही नहीं, किसी को भी यह अधिकार है। मैं उनके साथ हूं। पिछले 10 वर्षों से दिल्ली में रह रहे नासिक के वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि यह शिवसेना की मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में सत्ता बचाने की कवायद से ज्यादा और कुछ नहीं है। यह शर्मनाक है कि ठाकरे परिवार सेल्फ प्रोक्लेम्ड सेंसर बोर्ड बन गया है और मातोश्री नया थिएटर। शाहरुख देशभक्त हैं या नहीं, यह तय करने का अधिकार ठाकरे परिवार को किसने दिया। जहां तक मेरी जानकारी है शाहरुख के पिता जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी थे। शिवसेना इस देशभक्ति को नजरअंदाज नहीं कर सकती। यह केवल शाहरुख की फिल्म पर हमला नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है, जो कि असंवैधानिक है।
एक मल्टी नैशनल कंपनी में काम करने वाले अचिन जावडेकर कहते हैं कि मैं शाहरुख का फैन नहीं हूं, फिर भी मुझे यह मंजूर नहीं कि शिवसेना या एमएनएस किसी की फिल्म रोकने जैसा काम करे। यह बेहूदापन है। ठाकरे परिवार ऐसे सिर्फ अपने स्वार्थ साध रहा है और मराठी मानुष का कोई भला नहीं कर रहा है। ऐसा ही सोचना प्रिया वानखड़े का भी है। वह कहती हैं कि मुंबई या महाराष्ट्र ठाकरे परिवार की जागीर नहीं है, जो वह अपनी दादागिरी थोप रहे हैं। अगर उन्हें शाहरुख की बातों से आपत्ति है, तो वह फिल्म ना देखें। किसी और को रोकने का उन्हें कोई अधिकार नहीं। शिवसेना से राज्य सभा सांसद भारत कुमार राउत सफाई में कहते हैं कि पार्टी के किसी भी नेता ने सिनेमा बंद करने को नहीं कहा। हमने सिर्फ बहिष्कार की अपील की है। महाराष्ट्र सरकार ने पांच-छह हजार पुलिसकर्मी सिनेमाघरों की सुरक्षा में लगा दिए हैं, उसके बाद भी अगर सिनेमा मालिक फिल्म दिखाने को तैयार नहीं और लोग देखने को, तो यह लॉ ऐंड ऑर्डर की विफलता है। जहां तक शाहरुख की फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बात है, तो शाहरुख से माफी की मांग करना भी शिवसैनिकों की फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन है।
Thursday, February 18, 2010
यह केवल शाहरुख की फिल्म पर हमला नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है
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