हाई कोर्ट में शुक्रवार को दाखिल की गई एक जनहित याचिका नए मुख्यमंत्री के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राज्यसभा चुनाव के दौरान यहां एक फ्लैट के स्वामित्व की जानकारी नहीं देकर कानून का उल्लंघन किया है। जनहित याचिका में आरोप है कि चव्हाण के पास वडाला में वीनस कापरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में एक फ्लैट है, जिसका निर्माण अजमेरा बिल्डर्स ने आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए कराया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे संगठन 'राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी जन शक्ति' के अध्यक्ष हेमंत पाटिल ने जनहित याचिका दाखिल की है जिसमें कहा गया है कि चव्हाण ने इस फ्लैट का स्वामित्व हासिल करते वक्त जो दस्तावेज दिए थे वे दिखाते हैं कि वह आर्थिक तौर पर पिछड़े थे और वार्षिक आय 76 हजार रुपए थी। पीआईएल में यह आरोप भी है कि चव्हाण ने राज्यसभा चुनावों के समय उम्मीदवार के तौर पर जब पर्चा भरा उसके साथ अपनी संपत्ति की घोषणा करते समय फ्लैट के मालिक होने की जानकारी छिपा गए। जनहित याचिका कहती है, 'इस तरह कांग्रेस नेता ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के अनुसार तय आचार संहिता के नियमों का उल्लंघन किया।' इसमें कहा गया है कि चव्हाण ने यह भी झूठी घोषणा की थी कि वह आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। आरोप है कि इस तरह का रुख अपनाकर उन्होंने आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध किया है। याचिका पर अभी सुनवाई होनी है जिसमें मुख्यमंत्री के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की गई है। जनहित याचिका में यह मांग भी की गई है कि सुनवाई लंबित होने और अंतिम फैसला आने तक चव्हाण के किसी भी सरकारी पद पर बने रहने पर रोक लगाई जाए। पीआईएल में हाई कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को चव्हाण के खिलाफ कार्रवाई करने का और राज्यसभा में उनके चुनाव को खारिज करते हुए छह साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का निर्देश दिया जाए। पीआईएल में यह मांग भी की गई है कि चुनाव आयोग को चव्हाण के खिलाफ जांच कराने और उनके खिलाफ लगाये गये आरोपों के संबंध में अदालत में एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाए। इस बीच मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने कहा कि वे याचिकाकर्ता के आरोपों का जवाब अदातल में देंगे।
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