Friday, January 16, 2009
शिक्षा के मंदिर नशेबाजी के अड्डे
उत्तराखंड के स्कूलों जाने वाले बच्चों का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा है। उन्हें स्कूल में शारीरिक व मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही शिक्षा के मंदिर नशेबाजी के अड्डे बन गए हैं, यहां प्राइमरी सेक्शन के बच्चे भी नशा करना सिख जाते हैं। यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी गई उत्तराखंड राज्य की वैकल्पिक बाल स्थिति रिपोर्ट में साफ की गई है। यूनिक मीडिया एप्रोच फॉर न्यू जेनरेशन नाम के किशोरों के समूह ने 'जैसा हमने देखा' शीर्षक से अपनी दूसरी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी है, जिसमें बच्चों को घर और स्कूलों में होने वाली शारीरिक व मानसिक हिंसा की स्थिति का आकलन किया गया है। यह रिपोर्ट दिसंबर 2008 में तैयार की गई है। इसमें बताया गया है कि उत्तराखंड में स्कूलों में बच्चों के खिलाफ शारीरिक व मानसिक हिंसा बड़े पैमाने पर हो रही है। छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को बुरी तरह पीटा जा रहा है। पिटाई के डर से बच्चे स्कूलों से कतरा रहे हैं। स्कूलों में बड़ी कक्षाओं के छात्रों का छोटी कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के साथ दादागिरी करते हैं। स्कूल प्रशासन इस समस्या को लगभग नजरअंदाज करते हैं। अभिभावक भी इस ओर ध्यान नहीं देते। बच्चों में नशे का चलन जोर पकड़ रहा है। स्कूलों में बच्चे खुलेआम नशा करते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र भी नशे की चपेट में हैं। स्मोकिंग, गुटका और शराब स्कूलों में भी चलने लगी है। सुधार और परामर्श की व्यवस्था के नाम पर मारपीट ही अकेला साधन है, जिससे सुधार के बजाय बच्चे ज्यादा बिगड़ रहे हैं। रिपोर्ट में बच्चों ने व्यवस्था में सुधार के लिए शिक्षकों और स्कूलों के वातावरण में बदलाव की बात कही है। शारीरिक एवं मानसिक हिंसा पर आधारित इस रिपोर्ट में छात्रों ने कुछ पीडि़त छात्रों पर कहा कि स्टडी के माध्यम से भी इन समस्याओं का गहराई से बताने का प्रयास भी किया है।
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