26/11 हमलों की जांच करने वाले राम प्रधान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शहर में हमलों की आशंका जताने वाले केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के अलर्ट पर कार्रवाई को लेकर महाराष्ट्र सरकार में टोटल कन्फ्यूजन था। मुंबई पुलिस के आला अफसरों ने ऐसी स्थिति से निपटने की तय प्रक्रिया ( एसओपी ) में बहुत ही लापरवाही दिखाई। इस पर रिपोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि ऐसे में एसओपी का क्या मतलब है , जब 166 लोग मारे गए। अलर्ट से पता चलता है होना था हमला : रिपोर्ट कहती है कि इंटेलिजेंस अलर्ट के कुल मिलाकर असेसमेंट से यही पता चलता है कि आतंकवादी मुंबई में किसी बड़े हमले की तैयारी में थे। ऐसी परिस्थिति से निपटने का मौजूदा सिस्टम नाकाफी था। रिपोर्ट के मुताबिक , डीजीपी , एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड या राज्य के गृह विभाग की ओर से सभी इंटेलिजेंस अर्लट्स संबंधित ऑपरेशनल यूनिटों को भेजे जाते हैं। लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि ऐसे अलर्ट से निपटने में राज्य सरकार के बीच पूरी तरह भ्रम की स्थिति थी। महाराष्ट्र के डीजीपी को 26/11 से पहले आईबी और रॉ से आतंकवादी हमले के सुराग मिले थे। लेकिन हैरत की बात यह है कि उन्होंने यह जानकारी राज्य के इंटेलिजेंस चीफ को दी ही नहीं।
पूरी रिपोर्ट पढ़ें : रामप्रधान रिपोर्ट (एक्सक्लूसिव)
अगर नहीं मानना तो क्यों है एसओपी : रिपोर्ट कहती है कि मुंबई पुलिस कमिश्नर को कमांड पोजिशन में रहना चाहिए था। इससे सुरक्षाबलों को बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता था और विभिन्न पुलिस यूनिटों के कामों में दोहराव नहीं होता। लेकिन तत्कालीन कमिश्नर हसन गफूर ने जॉइंट कमिश्नर राकेश मारिया को कंट्रोल रूम का इनचार्ज बनाकर पहले से तय स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रैक्टिस ( एसओपी ) का माखौल उड़ाया है। एसओपी के तहत ऐसी हालत में जॉइंट कमिश्नर ( कानून - व्यवस्था ) क्राइसिस मैनेजमेंट कमांड , जॉइंट कमिश्नर ( क्राइम ) उस दौरान एटीएस के जॉइंट कमिश्नर के साथ मिलकर काम करेंगे। लेकिन 26/11 की रात ये इंस्ट्रक्शन नहीं माने गए। होटलों ने सुरक्षा सलाहों को नहीं माना : जॉइंट कमिश्नर क्राइम राकेश मारिया को कंट्रोल रूम की कमान सौंपी गई। जबकि एसओपी के तहत उन्हें एटीएस चीफ हेमंत करकरे के साथ ग्राउंड पर होना चाहिए था। मारिया की जगह अगर जॉइंट कमिश्नर लॉऐंड ऑर्डर होते तो वह बेहतर तरीके से सुरक्षाबलों का इस्तेमाल कर सकते थे , क्योंकि वह सभी पुलिस स्टेशनों के इनचार्ज भी होते हैं और उन्हें फोर्स के बंटवारे के बारे में गहराई से पता होता है। हालांकि रिपोर्ट में मारिया को सराहा गया। राम प्रधान कमिटी यह भी कहती है कि ओबेरॉय और ताज होटलों के मैनेजमेंट हमलों से पहले मुंबई पुलिस से मिली सुरक्षा सलाहों को लागू करने में नाकाम रहा , जो दुखद साबित हुआ।
एटीएस में स्टाफ की कमी :
रिपोर्ट ने सिफारिश की है कि एटीएस को महाराष्ट्र के अलावा मुंबई की सभी आतंकवादी गतिविधियों की पड़ताल करनी चाहिए , लेकिन इसके बावजूद यह फोर्स अब भी स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। इस बल में फिलहाल 300 कमीर् हैं। आईबी ने यहूदी पूजाघरों पर हमले की तीन बार चेतावनी दी थी लेकिन कोई भी उस अलर्ट को समझ नहीं पाया और नरीमन हाउस पर हमला हुआ।
Wednesday, December 2, 2009
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