मुंबई। 1995 के बाद से झोपड़ावासी बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हैं। उनके पास प्यासे मरने, खरीद कर पानी पीने या फिर 2-4 किलोमीटर दूर से पानी लाने का विकल्प होता है। इसलिए इन झोपड़पट्टियों में राशन की दुकान पर वह ठंडा पानी भी मिलता है जिसे पूरी तरह से साफ भी नहीं कहा जा सकता। दुकानदार यह पानी टैंकर से मंगा कर टंकी में जमा करके रखते हैं या अवैध कनेक्शनों से जमा करके बेचने के लिए रखते हैं। इसके अलावा वैध कनेक्शन वाले लोग अपने काम लायक पानी बचाकर शेष पानी दुकानदारों को बेच देते हैं। इन इलाकों में एक लिटर का पाउच ठंड के दिनों में 50 पैसे में और गर्मी के मौसम में 1 रुपये में मिलता है। साथ ही 30 लिटर का कैन (फुग्गा) 5 से 10 रुपये के बीच मिलता है। जबकि मनपा इस पानी की आपूर्ति 2.75 रुपये प्रति हजार लिटर की दर से आपूर्ति करती है। देवनार के रफीक नगर, मोहिते पाटील नगर और मानखुर्द के इंदिरा नगर, घाटकोपर के नेताजी नगर तथा मालाड के अम्बुजवाडी इलाके में रहने वाले लोग पानी खरीदने या प्यासे मरने के लिए बाध्य हैं। मनपा अधिकारी, राजनेता और अफसरशाह नियम का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेते हैं। यह जानकार आश्चर्य जरूर होगा कि इस तरह के अवैध झोपड़ों में बसते हैं करीब 12 लाख लोग। समाज सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों का मत है कि पानी के लिए वैध-अवैध और रहने का प्रमाण कोई नियम नहीं होना चाहिए। या तो लोगों को अवैध रूप से बसने ही मत दो नहीं तो जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाओ। लोगों का तर्क है कि मनपा के पास बेचने के लिए भरपूर पानी है तो वह इन लोगों को 8 लाख लिटर पानी आसानी से दे सकती है। बहुतों का कहना है कि इस नियम की आड़ में दुकानदार परेशानहाल लोगों से लाखों रुपये कमा रहे हैं और वे कभी नहीं चाहेंगे कि मनपा इन इलाकों में जल आपूर्ति शुरू करे।
Tuesday, December 21, 2010
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