महालक्ष्मी इलाके
की शक्ति मिल में महिला फोटो जर्नलिस्ट से बलात्कार करने वाले पांचों अपराधियों ने
इस घिनौने अपराध को पहली बार अंजाम नहीं दिया है। इसी मिल के ऐसी ही सूनसान इलाकों
में इन दरिंदों ने इससे पहले भी 4 लड़कियों की अस्मत को तार-तार किया है। यह
पहला मौका नहीं है, जब ऐसा कोई चौंकाने वाला सच सामने आया
है। भारत में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और अपराध से जुड़ी हर रिपोर्ट और शोध
ने यह साबित किया है कि लोक लाज, सामाजिक दबाव, लंबी कानूनी प्रक्रिया और ऐसे ही कई कारणों से भारत में रजिस्टर कराए जाने
वाले बलात्कार और वास्तविक रेप के मामलों में जमीन आसमान का अंतर देखने को मिलता
है।
निढाल बनाता कानून
जब भी ऐसी कोई घटना सामने आती है, तो सबसे पहला सवाल सामने आता है कि क्या इन अपराधियों में कानून का खौफ बिलकुल नहीं रहा है। एडवोकेट और जानीमानी ऐक्टिविस्ट, आभा सिंह बताती हैं कि ऐसा बिलकुल नहीं है कि भारत में महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार या हिंसा के लिए कोई ढीले कानून हैं। बल्कि हमारे यहां भी बेहद कड़े कानून हैं, लेकिन किसी भी कानून का तब तक फायदा नहीं, जब तक उसका कड़ाई से पालन न हो। कानूनी प्रक्रिया अपने आप में इतनी लंबी और जटिल हो जाती है कि शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से टूट चुकी महिला इस पूरे चक्कर में ही हार जाती है। आभा सिंह बताती हैं कि पुलिस हमेशा यह कोशिश करती है कि ज्यादातर मामले बाहर ही निपट जाए, ताकि कम से कम एफआईआर रजिस्टर हों।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील, साहिल शांडिल्य का कहना है कि बलात्कार के मामलों में सामाजिक दबाव इतना रहता है कि लोग घटनाओं को सामने नहीं आने देते। भारत में रेप के लगभग 80 प्रतिशत मामलों में बलात्कार किसी जानकारी द्वारा किया जाता है। ऐसे में रिश्तों के आड़े आने की वजह से कई मामले घरों में ही दबा दिए जाते हैं।
निढाल बनाता कानून
जब भी ऐसी कोई घटना सामने आती है, तो सबसे पहला सवाल सामने आता है कि क्या इन अपराधियों में कानून का खौफ बिलकुल नहीं रहा है। एडवोकेट और जानीमानी ऐक्टिविस्ट, आभा सिंह बताती हैं कि ऐसा बिलकुल नहीं है कि भारत में महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार या हिंसा के लिए कोई ढीले कानून हैं। बल्कि हमारे यहां भी बेहद कड़े कानून हैं, लेकिन किसी भी कानून का तब तक फायदा नहीं, जब तक उसका कड़ाई से पालन न हो। कानूनी प्रक्रिया अपने आप में इतनी लंबी और जटिल हो जाती है कि शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से टूट चुकी महिला इस पूरे चक्कर में ही हार जाती है। आभा सिंह बताती हैं कि पुलिस हमेशा यह कोशिश करती है कि ज्यादातर मामले बाहर ही निपट जाए, ताकि कम से कम एफआईआर रजिस्टर हों।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील, साहिल शांडिल्य का कहना है कि बलात्कार के मामलों में सामाजिक दबाव इतना रहता है कि लोग घटनाओं को सामने नहीं आने देते। भारत में रेप के लगभग 80 प्रतिशत मामलों में बलात्कार किसी जानकारी द्वारा किया जाता है। ऐसे में रिश्तों के आड़े आने की वजह से कई मामले घरों में ही दबा दिए जाते हैं।
महिला आयोग की
सदस्य निर्मला सावंत प्रभावलकर बताती हैं कि यह सही है कि पिछले साल दिल्ली में
हुए गैंगरेप के बाद पूरे देश में बलात्कार के मामले काफी मात्रा में रजिस्टर हुए
हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों की सोच में बदलाव। पहले बलात्कार के लिए, बलात्कारी के
बजाए पीडि़त महिला को सामाजिक शर्म और तिरस्कार झेलना पड़ता था। लेकिन पिछले कुछ
सालों में यह माइंडसेट बदला है। लेकिन अभी भी रिश्तेदारों और जानने वालों के
द्वारा किए जाने वाले रेप के मामले सामने ही नहीं आते। सावंत बताती हैं कि मेरे
सामने सैकड़ों ऐसे मामले आए हैं, जिनमें सगे संबंधियों ने
जैसे जीजा द्वारा अपनी साली के बलात्कार में उसकी ही बहन ने ही छोटी बहन को केस
करने से रोका।
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