बीजेपी और शिवसेना के 25 साल पुराने गठबंधन के टूट जाने के बाद दोनों पार्टियों ने
गठबंधन के अपने छोटे सहयोगियों से विधानसभा चुनाव में समर्थन करने की अपील की है।
रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया (आरपीआई) ने कहा कि शिवसेना प्रमुख
उद्धव ठाकरे ने विधानसभा चुनावों के लिए समर्थन का अनुरोध किया है। उद्धव ठाकरे से
मुलाकात करने के बाद अठावले ने कहा, 'उद्धव ने गठबंधन तोडने के लिए
बीजेपी से नाखुशी जताई और कहा कि शिवसेना हमेशा गठबंधन को कायम रखना चाहती थी।
उन्होंने मुझसे चुनावों में शिवसेना को समर्थन देने का अनुरोध किया।'
इससे पहले महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस ने कहा था कि बीजेपी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अपने छोटे सहयोगियों के साथ लड़ेगी। अठावले ने कहा कि वह एक बार फिर बीजेपी और शिवसेना के बीच मतभेद दूर करने का प्रयास करेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो किसी एक पार्टी को समर्थन करने के बारे में आखिरी फैसला अपने दल के कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श के बाद ही करेंगे।
विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर महाराष्ट्र में दो पुराने गठबंधन ढेर हो चुके हैं। जहां बीजेपी ने शिवसेना के साथ 25 साल पुराना गठजोड़ खत्म कर लिया, वहीं एनसीपी ने भी कांग्रेस से 15 साल से चला आ रहा रिश्ता तोड़ लिया। इससे राज्य में राज ठाकरे की एमएनएस सहित दूसरे छोटे दलों की अहमियत बढ़ गई है। शिवसेना और बीजेपी का 25 साल पुराना गठजोड़ गुरुवार को टूट गया। यह देश में दो दलों के बीच सबसे पुरानी पार्टनरशिप में से एक थी। अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में चौतरफा मुकाबला होगा। महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस और विधान परिषद में विपक्ष के नेता विनोद तावड़े ने गुरुवार शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बीजेपी अब छोटे सहयोगी दलों के साथ मिलकर शिवसेना से अलग चुनाव लड़ेगी। तावड़े ने कहा, 'शिवसेना के साथ अलायंस तोड़ना मुश्किल फैसला था।'
ऐसा लगा कि एनसीपी को जैसे इसी का इंतजार था। उसने भी देर शाम को कांग्रेस के साथ रिश्ते तोड़ने का ऐलान कर दिया। इससे त्रिशंकु विधानसभा और चुनाव बाद गठबंधन की कई संभावनाएं बन गई हैं। एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने बीजेपी के शिवसेना से अलग होने के फैसले के थोड़ी देर बाद कहा, 'मुझे पृथ्वीराज चव्हाण सरकार में काम करने में बड़ी मुश्किल होती है। मैं गुरुवार रात या शुक्रवार की सुबह पद छोड़ दूंगा। कांग्रेस सीटों को लेकर जिद पर अड़ी है और हमने उसके साथ अलायंस तोड़ने का फैसला किया है।' शरद पवार की एनसीपी और राज ठाकरे की एमएनएस की अहमियत अब बढ़ गई है। चुनाव से पहले आपसी तालमेल और चुनाव बाद अलायंस के कई ऑप्शन इन दोनों क्षेत्रीय दलों के लिए खुल गए हैं। पवार पहले बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। उन्हें या राज ठाकरे के लिए राष्ट्रीय पार्टियों के साथ अलायंस में कोई अड़चन नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी शिवसेना के साथ रिश्ते तोड़ने का बहाना और मौका ढूंढ रही थी। हालांकि प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने कहा कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व शिवसेना के साथ अलायंस नहीं तोड़ना चाहता था। उन्होंने इसके लिए पूरी तरह से उद्धव ठाकरे की पार्टी को कसूरवार ठहराया। बीजेपी ने जोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी, सीट शेयरिंग और कुछ विधानसभा क्षेत्रों को लेकर दोनों पार्टियों के बीच विवाद के चलते अलायंस टूटा है। महाराष्ट्र में शिवसेना बीजेपी की सीनियर पार्टनर थी। इसलिए उसने गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने पर दावा ठोका था। वह महाराष्ट्र चुनाव में अपने लिए 151 सीटें चाहती थी। हालांकि बीजेपी चाहती थी कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के बारे में फैसला हो। उनका कहना था कि चुनाव बाद दोनों में से जिस पार्टी को अधिक सीटें मिलती है, मुख्यमंत्री उसका होना चाहिए।
बीजेपी का गुस्सा इस वजह से भी बढ़ा क्योंकि शिवसेना ने उसे जो सीटें ऑफर की थीं, उन पर अभी कांग्रेस और एनसीपी के दिग्गज नेताओं का कब्जा है। मिसाल के लिए नांदेड़ की भोकर फॉर्मर चीफ मिनिस्टर अशोक चव्हाण की सीट रही है। शिवसेना ने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की लातूर सीट और पूर्व होम मिनिस्टर आर आर पाटिल की तसगांव सीट भी बीजेपी को ऑफर की थी। बीजेपी के एक नेता ने बताया, 'उन्होंने हमें 130 सीटें ऑफर की थीं और सहयोगी दलों को इसी में अजस्ट करने को कहा था। हमने ऐसा करने की कोशिश की, लेकिन अगर हम अपने कोटे से 6 सीटें सहयोगी दलों को देते तो हमारे पास 124 सीट ही बचती। शिवसेना ने पिछली बार से हमें सिर्फ पांच सीटें अधिक ऑफर की थी।' माना जा रहा है कि पहले की महायुति के सभी छोटे दल बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
हालांकि शिवसेना ने दावा किया कि ये वही सीटें हैं, जिनकी मांग बीजेपी कर रही थी। पार्टी के एक नेता ने कहा, 'वे हमसे उन 59 विधानसभा क्षेत्रों में से सीटें मांग रहे थे, जो हमने पिछले 25 साल में नहीं जीती हैं। हमने उन्हें वही सीटें दीं। अब उन्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए।' दिलचस्प बात यह है कि राज्य में अलायंस टूटने के बावजूद केंद्र में उनके गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ा है। बीजेपी के अलायंस टूटने की घोषणा से पहले शिवसेना नेता और केंद्रीय हेवी इंडस्ट्री मिनिस्टर अनंत गीते ने रिपोर्टर्स से कहा कि उनके मोदी कैबिनेट से इस्तीफे की कोई वजह नहीं है और केंद्र में दोनों पार्टियों का गठबंधन बना रहेगा। केंद्र और राज्य स्तर पर इस विरोधाभास से कई संभावनाएं जन्म लेती हैं। शिवसेना समझौते की पहल कर सकती है और पहले की तरह चुनाव से पहले बीजेपी से अलायंस कर सकती है या चुनाव के बाद दोनों पार्टियां मिलकर सरकार बना सकती हैं।
इससे पहले महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस ने कहा था कि बीजेपी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अपने छोटे सहयोगियों के साथ लड़ेगी। अठावले ने कहा कि वह एक बार फिर बीजेपी और शिवसेना के बीच मतभेद दूर करने का प्रयास करेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो किसी एक पार्टी को समर्थन करने के बारे में आखिरी फैसला अपने दल के कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श के बाद ही करेंगे।
विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर महाराष्ट्र में दो पुराने गठबंधन ढेर हो चुके हैं। जहां बीजेपी ने शिवसेना के साथ 25 साल पुराना गठजोड़ खत्म कर लिया, वहीं एनसीपी ने भी कांग्रेस से 15 साल से चला आ रहा रिश्ता तोड़ लिया। इससे राज्य में राज ठाकरे की एमएनएस सहित दूसरे छोटे दलों की अहमियत बढ़ गई है। शिवसेना और बीजेपी का 25 साल पुराना गठजोड़ गुरुवार को टूट गया। यह देश में दो दलों के बीच सबसे पुरानी पार्टनरशिप में से एक थी। अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में चौतरफा मुकाबला होगा। महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस और विधान परिषद में विपक्ष के नेता विनोद तावड़े ने गुरुवार शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बीजेपी अब छोटे सहयोगी दलों के साथ मिलकर शिवसेना से अलग चुनाव लड़ेगी। तावड़े ने कहा, 'शिवसेना के साथ अलायंस तोड़ना मुश्किल फैसला था।'
ऐसा लगा कि एनसीपी को जैसे इसी का इंतजार था। उसने भी देर शाम को कांग्रेस के साथ रिश्ते तोड़ने का ऐलान कर दिया। इससे त्रिशंकु विधानसभा और चुनाव बाद गठबंधन की कई संभावनाएं बन गई हैं। एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने बीजेपी के शिवसेना से अलग होने के फैसले के थोड़ी देर बाद कहा, 'मुझे पृथ्वीराज चव्हाण सरकार में काम करने में बड़ी मुश्किल होती है। मैं गुरुवार रात या शुक्रवार की सुबह पद छोड़ दूंगा। कांग्रेस सीटों को लेकर जिद पर अड़ी है और हमने उसके साथ अलायंस तोड़ने का फैसला किया है।' शरद पवार की एनसीपी और राज ठाकरे की एमएनएस की अहमियत अब बढ़ गई है। चुनाव से पहले आपसी तालमेल और चुनाव बाद अलायंस के कई ऑप्शन इन दोनों क्षेत्रीय दलों के लिए खुल गए हैं। पवार पहले बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। उन्हें या राज ठाकरे के लिए राष्ट्रीय पार्टियों के साथ अलायंस में कोई अड़चन नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी शिवसेना के साथ रिश्ते तोड़ने का बहाना और मौका ढूंढ रही थी। हालांकि प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने कहा कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व शिवसेना के साथ अलायंस नहीं तोड़ना चाहता था। उन्होंने इसके लिए पूरी तरह से उद्धव ठाकरे की पार्टी को कसूरवार ठहराया। बीजेपी ने जोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी, सीट शेयरिंग और कुछ विधानसभा क्षेत्रों को लेकर दोनों पार्टियों के बीच विवाद के चलते अलायंस टूटा है। महाराष्ट्र में शिवसेना बीजेपी की सीनियर पार्टनर थी। इसलिए उसने गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने पर दावा ठोका था। वह महाराष्ट्र चुनाव में अपने लिए 151 सीटें चाहती थी। हालांकि बीजेपी चाहती थी कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के बारे में फैसला हो। उनका कहना था कि चुनाव बाद दोनों में से जिस पार्टी को अधिक सीटें मिलती है, मुख्यमंत्री उसका होना चाहिए।
बीजेपी का गुस्सा इस वजह से भी बढ़ा क्योंकि शिवसेना ने उसे जो सीटें ऑफर की थीं, उन पर अभी कांग्रेस और एनसीपी के दिग्गज नेताओं का कब्जा है। मिसाल के लिए नांदेड़ की भोकर फॉर्मर चीफ मिनिस्टर अशोक चव्हाण की सीट रही है। शिवसेना ने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की लातूर सीट और पूर्व होम मिनिस्टर आर आर पाटिल की तसगांव सीट भी बीजेपी को ऑफर की थी। बीजेपी के एक नेता ने बताया, 'उन्होंने हमें 130 सीटें ऑफर की थीं और सहयोगी दलों को इसी में अजस्ट करने को कहा था। हमने ऐसा करने की कोशिश की, लेकिन अगर हम अपने कोटे से 6 सीटें सहयोगी दलों को देते तो हमारे पास 124 सीट ही बचती। शिवसेना ने पिछली बार से हमें सिर्फ पांच सीटें अधिक ऑफर की थी।' माना जा रहा है कि पहले की महायुति के सभी छोटे दल बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
हालांकि शिवसेना ने दावा किया कि ये वही सीटें हैं, जिनकी मांग बीजेपी कर रही थी। पार्टी के एक नेता ने कहा, 'वे हमसे उन 59 विधानसभा क्षेत्रों में से सीटें मांग रहे थे, जो हमने पिछले 25 साल में नहीं जीती हैं। हमने उन्हें वही सीटें दीं। अब उन्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए।' दिलचस्प बात यह है कि राज्य में अलायंस टूटने के बावजूद केंद्र में उनके गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ा है। बीजेपी के अलायंस टूटने की घोषणा से पहले शिवसेना नेता और केंद्रीय हेवी इंडस्ट्री मिनिस्टर अनंत गीते ने रिपोर्टर्स से कहा कि उनके मोदी कैबिनेट से इस्तीफे की कोई वजह नहीं है और केंद्र में दोनों पार्टियों का गठबंधन बना रहेगा। केंद्र और राज्य स्तर पर इस विरोधाभास से कई संभावनाएं जन्म लेती हैं। शिवसेना समझौते की पहल कर सकती है और पहले की तरह चुनाव से पहले बीजेपी से अलायंस कर सकती है या चुनाव के बाद दोनों पार्टियां मिलकर सरकार बना सकती हैं।
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