1993 के
मुंबई बम धमाकों में जिस याकूब मेमन को इस महीने फांसी दी जाएगी, उसकी व उसके परिवार की साजिश को
शायद विफल कर दिया जाता, यदि
पुलिस ब्लास्ट से एक दिन पहले मेमन परिवार की साजिश को भांप जाती।
मुंबई में 12 मार्च, 1993 को सीरियल बम धमाके हुए थे, पर इन धमाकों के लिए गाड़ियों में
आरडीएक्स एक दिन पहले ही मेमन परिवार की माहिम स्थित बिल्डिंग में भरना शुरू कर
दिया गया था। कुल 15 गाड़ियों
में आरडीएक्स रखा गया था, इनमें
स्कूटर, जिप्सी, कारें सब कुछ थीं। पर इन 15 गाड़ियों के अलावा भी वहां कई
गाड़ियां जमा हुई थीं। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, इतनी गाड़ियों को देखने के बाद माहिम पुलिस को कुछ शक हुआ। फौरन एक
हवलदार याकूब मेमन परिवार के घर भेजा भी गया, पर
इस हवलदार को वहां याकूब द्वारा बोला गया कि आज हमारे यहां बर्थ डे पार्टी है, इसलिए यहां गाड़ियों से लोग आए
हैं। हवलदार उनकी बातों में फंस गया और बिना शक किए वहां से वापस पुलिस स्टेशन आ
गया। इसके अगले दिन ही मुंबई में एक दर्जन जगह बम धमाके हो गए।
इस केस की जांच से जुड़े रहे पूर्व
एसीपी सुरेश वालीशेट्टी ने एनबीटी से कहा कि याकूब ने सीए की डिग्री ली हुई है और
मेमन परिवार में सबसे पढ़ा लिखा हुआ है। 1993 का
बम ब्लास्ट का यह केस जिस गाड़ी से ओपन हुआ, वह
गाड़ी भी याकूब की पत्नी के नाम रजिस्टर्ड थी। दरअसल 12 मार्च के ब्लास्ट की पूरी साजिश 11 मार्च को रचने के बाद मेमन परिवार 11 मार्च की रात को ही मुंबई से भाग
गया था। 12 मार्च को बम धमाकों की साजिश के
साथ बीएमसी मुख्यालय में हैंडग्रेनेड व एके-56 से
फिदायीन हमले की भी साजिश रखी गई थी। लेकिन जब हथियार व गोलबारूद से भरी यह गाड़ी
माहिम से निकली,
तो उसी दौरान पासपोर्ट
ऑफिस के पास बम धमाका हो गया। इससे घबरा कर गाड़ी में बैठे लोग वरली टीवी सेंटर के
पास वह गाड़ी खड़ी कर भाग गए। 12 मार्च
की देर रात जब यह गाड़ी पुलिस को लावारिस पड़ी मिली, तो आरटीओ की मदद से गाड़ी मालिक के घर का अड्रेस निकाला गया। उसी में
पता चला कि यह गाड़ी याकूब की पत्नी के नाम माहिम के पते पर रजिस्टर्ड है। इसी के
बाद मेमन परिवार की खोजबीन शुरू हुई, पर
तब तक ये लोग मुंबई से भाग चुके थे। याकूब को 1994 में नेपाल में पकड़ा गया था, हालांकि
सीबीआई ने उसे अधिकृत रूप से दिल्ली में अरेस्ट दिखाया था।
इस केस की जांच से जुड़े एक और
अधिकारी धनंजय दौंड के अनुसार, मुंबई
भागने से पहले याकूब ने हैंडग्रेनेड से भरे दो बैग माहिम पुलिस स्टेशन के पास
स्थित अपने एक दोस्त को दिए थे। याकूब मानकर चल रहा था कि जिस तरह जनवरी, 93 में मुंबई में सांप्रदायिक दंगे
हुए थे, वैसे ही सांप्रदायिक दंगे मार्च, 93 के बम धमाकों के बाद भी होंगे, इसलिए याकूब की तैयारी यह थी कि
ब्लास्ट के बाद जैसे ही मुंबई में दंगे होंगे, पुलिस पर इन हैंडग्रेनेड से हमला करवाया जाएगा। पर सौभाग्य से जब ऐसा
हुआ नहीं, तो याकूब के इस दोस्त ने
हैंडग्रेनेड से भरे इन दोनों बैगों को कोलाबा के अपने एक पहचान वाले ट्रेवल एजेंट
को दे दिया। ट्रेवल एजेंट के जरिए फिर ये बैग किसी टैक्सी ड्राइवर तक पहुंचे और
फिर इस टैक्सी ड्राइवर के जरिए पुलिस को मिले।
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