इंडोनेशिया के बाली में अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी ने
दुनियाभर में उनके धंधों, उनकी शक्ितयों और दुश्मनी की बातों को दुनिया के सामने
लाया है। अपराधिक गतिविधियों के अलावा, दाऊद इब्राहिम ने खुद
को अपने समुदाय के रक्षक नेताओं के रूप में पेश किया है, जो
जल्द न्याय दिलाने और स्थानीय झगड़ों को सुलझाने में मदद करते हैं।
एक दौर ऐसा भी था जब बॉम्बे में तमिल के डॉन राज किया करते थे। डी कंपनी
और राजन की तरह वे भी अपने समुदाय का नेतृत्व करते थे। टाइम्स ऑफ इंडिया में
प्रकाशित एक खबर के अनुसार, ये गरीब प्रवासी धारावी जैसी मलिन बस्तियों में रहा करते
थे। 1960 से 80 के दशक तक का बॉम्बे
(अब मुंबई) काफी हद तक 1920-30 के दशक में शिकागो और इटैलियन
माफिया की तर्ज पर चल रहा था।
तस्करी, जुआ, वेश्यावृत्ित और अवैध शराब की
बिक्री जैसे धंधों को गैंगस्टर नियंत्रित किया करते थे। हाजी मस्तान मिर्जा और
वरदराजन मुनिस्वामी मुदलियार भी ऐसे ही प्रवासी थे। संयोग से दोनों का जन्म 1 मार्च 1926 को हुआ था। रामनाथपुरम जिले के पनाईकुलम
में मस्तान का जन्म हुआ था, जबकि वरदराजन का जन्म मद्रास
प्रेसीडेंसी के तुतीकोरिन में हुआ था।
छोटा राजन का मुख्य संरक्षक राजन महादेव नायर उर्फ बड़ा राजन दक्षिण का
डकैत था, जो उस वक्त वरदराजन के साथ जुड़ा हुआ था। मुंबई में उस दौर
में तीन बड़े गैंगस्टर हाजी मस्तान, अफगान मूल का पठान
करीम लाला और वरदराजन हुआ करते थे।
वरदराजन ने अपने इलाके की रक्षा और प्रतिद्वंद्वियों के खतरे को कम करने के
लिए बड़ा राजन की मदद मांगी। इससे बड़ा राजन को अपना प्रभाव बढ़ाने में काफी मदद
मिली। धीरे-धीरे बड़ा राजन और उसके साथी फिल्मों की टिकटों की कालाबाजारी के
अलावा पैसों के लेन-देन और संपत्ित के विवादों को निपटाने का काम भी देखने लगे।
हाजी मस्तान अपने पिता के साथ आठ वर्ष की उम्र में मुंबई आया था। उसने शहर
के भीड़-भाड़ वाले इलाके में साइकिल की मरम्मत का काम शुरू किया। साल 1944
में मस्तान बॉम्बे डॉक में काम करने लगा, जहां उसकी मुलाकात
करीम लाला से हुई। कुछ छोटे धंधों और तस्करी का काम दोनों को आकर्षक लगा।
वर्ष 1955 से 75 के दौर में हाजी मस्तान
बहुमूल्य धातुओं की तस्करी का बड़ा खिलाड़ी हो गया और बाद में वह बॉलीवुड में
सेलिब्रिटी बन गया। वह फिल्मों के निर्माण के लिए डायरेक्टर्स और फिल्म स्टूडियो
को पैसा देने लगा। बाद में उसने फिल्म प्रोडक्शन में पैसा लगाना शुरू कर दिया।
बाद के वर्षों में अंडरवर्ल्ड के डॉन ने आतंक फैलाया, जबकि
हाजी मस्तान को नरमदिल माफिया डॉन माना जाता था। इमरजेंसी के दौर में उसे जेल में
बंद कर दिया गया। माना जाता है कि उसने जेल में ही हिंदी सीखी और इसके काफी समय
बाद 1984 में वह राजनीति में उतर आया। उसने दलित मुस्लिम
सुरक्षा महासंघ बनाया था।
वरदराजन 1960 के दशक में मुंबई आया था और मध्य रेलवे के मुख्य
विक्टोरिया टर्मिनस पर एक कुली का काम करने लगा। वह एक मुस्लिम दरगाह के बाहर
गरीबों को भोजन कराता था और इस तरह उसे स्थानीय लोगों का समर्थन मिला। बाद में
उसे अवैध शराब के डिस्ट्रीब्यूशन में सहयोग करने का मौका मिला।
बॉम्बे पोर्ट में हाजी मस्तान ने स्मगलिंग का बिजनेस स्थापित कर लिया
था। वरदराजन भी सामान की चोरी में शामिल हो गया। बाद में वह भाड़े पर हत्याएं, नार्कोटिक्स
और जमनी पर कब्जे करने लगा। एक तमिल डॉन के रूप में वह माटुंगा, सायन, धारावी और कोलीवाडा में अपने समुदाय में इज्जत
पाने लगा। बताया जाता है कि वहां उसने कई मामलों के निपटारे में मध्यस्तता की।
तमिलनाडु में मुरुगन का भक्त वरदराजन बाद में गणेश भक्त बन गया और
गणेशउत्सव के दौरान उसने बॉम्बे में पंडाल लगाना शुरू किया। मगर, 1980
के दशक के मध्य में उसे पंडाल खाली करने के लिए पुलिस ने नोटिस भेजा। इसी दौरान
उसके कई सदस्यों को जेल में बंद कर दिया गया और कुछ साथियों को पुलिस ने मुठभेड़
में मार गिराया।
इसके बाद वह मुंबई से चेन्नई भाग गया, जहां जनवरी 1988 तक वह निर्वासित जिंदगी बिताते हुए हार्ट अटैक से मर गया। वरदराजन की
इच्छा को पूरी करते हुए हाजी मस्तान उसके शव को चार्टड प्लेन से मुंबई लाया,
जहां लोगों ने उसे श्रद्धांजलि दी। मुंबई में 1994 में हाजी मस्तान की भी मौत हो गई।