टाटा मेमोरियल अस्पताल की सौ करोड़ रुपए कीमत की दवाओं के अवैध रूप से खुले बाजार में बेचने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। सीबीआई ने इस मामले में छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इनमें डिप्टी मेडिकल सूपरिंटेंडंट डॉक्टर रेखा बतूरा का नाम प्रमुख है। अन्य आरोपियों में आफिस इंचार्ज और फार्मासिस्ट वाई दीक्षित, पी बी ढाके, चेतना पवार, नीना नाकरे और नीलिमा देशपांडे के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज हुई है। एनबीटी ने 6 नवंबर, 2008 को इस घोटाले की सबसे पहले खबर प्रकाशित की थी। सीबीआई अधिकारियों ने इस केस में कई बड़े डॉक्टरों के भी शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया है। सीबीआई के एंटी करेप्शन ब्यूरो के जॉइंट डाइरेक्टर आर.आर.सिंह ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि उन्हें लगता है कि दवाओं से जुड़ा यह घोटाला सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है। सीबीआई अधिकारियों के अनुसार इस रैकेट से जुड़े लोग कई तरह से टाटा मेमोरियल अस्पताल की दवाएं खुले बाजार में निकालते थे। मसलन यदि किसी मरीज को एक गोली चाहिए होती थी, तो अस्पताल के रजिस्टर में उस मरीज के नाम पर कई गोलियां दिखाई जाती थीं। ये शेष गोलियां बाद में बाजार में बेच दी जाती थीं। यही नहीं, जिन मरीजों की कई साल पहले मौत हो चुकी है, उन मरीजों के नाम पर भी अस्पताल के रजिस्टर में दवाएं लिखी पाई गईं। ये दवाएं भी खुले बाजार में बेची गईं। जिन कैंसर मरीजों के बचने की संभावनाएं न के बराबर होती थी, ऐसे मरीजों को टाटा मेमोरियल अस्पताल की तरफ से टेस्ट के लिए कुछ दवाएं दी जाती थीं। ऐसी दवाओं को टाटा में खुद बनाया जाता था और इन्हें कभी भी बाजार में बेचने की किसी को इजाजत नहीं थी, पर इस रैकेट से जुड़े लोगों ने इन दवाओं को भी बेचकर करोड़ों रुपए कमाए थे। सीबीआई की जांच में पता चला है कि इस रैकेट से जुड़े लोगों ने दवा कंपनियों द्वारा निशुल्क और एनजीओ द्वारा निशुल्क दी गई दवाओं में भी हेराफेरी की थी। इस बीच टाटा मेमोरियल सेंटर के डाइरेक्टर आर. बडवे द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि अस्पताल इस मामले में सीबीआई को पूरा सहयोग दे रहा है। बयान के मुताबिक जिन छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, अस्पताल ने उन्हें पिछले साल ही निलंबित कर दिया था।
Monday, May 18, 2009
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