बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के शहरी विकास विभाग के उप
सचिव को एक गुम फाइल के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का
निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी नागरिक को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून
के तहत जानकारी देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने यह निर्देश भी दिया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद छह महीने के अंदर जांच पूरी होनी चाहिए और इसकी अगुवाई पुलिस उपायुक्त से कम स्तर के अधिकारी नहीं करेंगे। जज अभय ओक और जज ए. एस. गडकरी ने शुक्रवार को अपने आदेश में अधिकारियों की लापरवाही के लिए राज्य सरकार पर 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया। इनकी लापरवाही के कारण शहरी विकास विभाग की एक फाइल गुम हो गई, जिससे एक वकील को आरटीआई कानून के तहत सूचना नहीं दी जा सकी।
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने यह निर्देश भी दिया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद छह महीने के अंदर जांच पूरी होनी चाहिए और इसकी अगुवाई पुलिस उपायुक्त से कम स्तर के अधिकारी नहीं करेंगे। जज अभय ओक और जज ए. एस. गडकरी ने शुक्रवार को अपने आदेश में अधिकारियों की लापरवाही के लिए राज्य सरकार पर 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया। इनकी लापरवाही के कारण शहरी विकास विभाग की एक फाइल गुम हो गई, जिससे एक वकील को आरटीआई कानून के तहत सूचना नहीं दी जा सकी।
हाई कोर्ट सांगली के
ऐडवोकेट विवेक विष्णुपंत कुलकर्णी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। वह स्वयंसेवी
संगठन स्वातंत्र्य वीर सावरकर प्रतिष्ठान के पदाधिकारी भी हैं। यह संगठन दो स्कूल
चलाता है, जिनमें 1600 विद्यार्थी
पढ़ाई करते हैं। 58 वर्षीय याचिकाकर्ता ने पांच सितंबर 2008 को याचिका दाखिल की थी और शहरी विकास विभाग के
सूचना अधिकारी से 21 अगस्त 1996 के एक सरकारी
संकल्प के संबंध में सूचना मांगी थी।
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