महाराष्ट्र
में 'महायुति' के नाराज साथी दलों को मनाने की
जिम्मेदारी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को निभानी पड़ी। उन्होंने
चारों साथी दलों को जल्द ही सरकार में शामिल करने का आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री
ने उन्हें विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र से पहले सरकार में हिस्सेदारी देने का
आश्वासन दिया है। जुलाई महीने से महाराष्ट्र विधानमंडल का वर्षाकालीन सत्र शुरू हो
रहा है। आश्वासन से संतुष्ट चारों घटक दलों- आरपीआई, स्वाभिमानी शेतकरी पार्टी, राष्ट्रीय
समाज पार्टी और शिवसंग्राम ने बागी तेवर शांत कर दिए।
बीजेपी के साथ इन चारों
दलों ने पिछले विधानसभा चुनाव में महायुति बनाई थी। चुनाव में अपने खिलाफ लड़ने
वाली शिवसेना को बाद में बीजेपी ने महायुति और सरकार में शामिल कर लिया। इसके बाद
से चुनाव के समय बीजेपी का साथ देने वाली चारों पार्टियां नजरअंदाज किए जाने का
आरोप लगा रही हैं। बीजेपी नेताओं ने सरकार के अंदरूनी मतभेद निपटाने के लिए
शिवसेना के साथ मिलकर समन्वय समिति बनाई मगर उसमें बचे हुए साथी दलों को स्थान
नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने इस समन्वय समिति में भी सभी दलों को जगह देकर छह घटक
दलों की नई समिति बनाने का आश्वासन दिया है।
चारों घटक दलों ने
दोपहर को बांद्रा में मिलकर बैठक की। इसमें सरकार का साथ छोड़ने की प्रछन्न धमकी
भी दी गई। हालांकि आठवले ने स्पष्ट किया कि सरकार को अस्थिर करने का कोई इरादा
नहीं है। चेतावनी की भाषा कुछ अलग थी। उन्होंने कहा, हमारी नहीं सुनी गई तो 'हमें
अलग विचार करना पड़ेगा'।
चारों पार्टियों के नेताओं रामदास आठवले (आरपीआई), राजू शेट्टी (स्वाभिमानी शेतकरी), महादेव जानकर (राष्ट्रीय समाज पार्टी) और विनायक मेटे (शिवसंग्राम)
ने बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रामक बयान दिए। छह महीने बाद भी सरकार में देवेंद्र
फडणवीस सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिली, इसको
लेकर गुस्सा जताया गया। मुख्यमंत्री ने दोपहर को मिलने का समय दिया। तब तक गुस्सा
काफी हद तक कमजोर पड़ चुका था।
मुख्यमंत्री के सामने
साथी दलों के नेताओं ने पूरा पहाड़ा बांच डाला। सरकार में केवल नाम को हैं। कोई
काम तक नहीं करता। नीतियां तय करते समय विश्वास में लेना जरूरी नहीं समझा जाता।
बातचीत तक के लिए कोई नहीं बुलाता। बताया जाता है मुख्यमंत्री ने नाराज साथी दलों
की शिकायते ध्यान से सुनीं। एक के बाद एक आश्वासन देते चले गए। सरकार में स्थान
मिलेगा, इस आश्वासन से साथी दलों की बांछें
खिल गईं। इसका मतलब यह लगाया जा रहा है कि इन चारों दलों के कम से कम एक विधायक को
मंत्री का दर्जा दिया जाएगा। मेटे को छोड़कर चूंकि बाकी चार दलों का एक भी विधायक
नहीं है, इसलिए एक-एक विधायक पद भी इन दलों
को मिलेगा। कम से कम साथी दलों का यही अनुमान है। वाकई मंत्री पद दिया जाएगा, या फिर मंत्री दर्जे का कोई समिति
अध्यक्ष पद, यह अभी देखा जाना है।
चारों
पार्टियों के पास मिलकर एक विधायक है। मुंबई के वरसोवा इलाके से जीतीं भारती
लव्हेकर ने भी मेटे की पार्टी का चुनाव चिह्न इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने बीजेपी
के चुनाव चिह्न पर, उसके
पार्टी अध्यक्ष का 'ए' और 'बी'
फॉर्म लेकर चुनाव लड़ा।
इसलिए वे मराठा महासंघ की बजाए बीजेपी की विधायक गिनी जाएंगी। जब जब विधानसभा में
बीजेपी उन्हें नोटिस देकर किसी मुद्दे पर मतदान करने को कहेगी, उन्हें मजबूरन पालन करना होगी।
वरना विधायक पद गंवाने का खतरा है।
हम
साथ न आए होते तो बीजेपी को यह सफलता नहीं मिलती। मित्र दलों के राज्य में मौका
नहीं दिया गया। चुनाव से पहले सत्ता में 10 प्रतिशत
हिस्सेदारी देने का वादा किया पर पूरा नहीं किया।
गोपीनाथ मुंडे पर
विश्वास करके महायुति में शामिल हुए थे। बीजेपी में हर व्यक्ति मुंडे के दिए वचन
से हाथ झटक रहा है। जिनके पास अधिकार हैं, उन्हें
हमारे साथ बातचीत करनी चाहिए।
हमें सत्ता में हिस्सा
मिलना ही चाहिए। एनसीपी और कांग्रेस नहीं चाहिए थी, इसलिए बढ़कर तुम्हारे साथ हाथ मिलाया था। हमारी पार्टियों को
मंत्रिमंडल में शामिल किया ही जाना चाहिए।