एक
तरफ तो कालबादेवी अग्निकांड में जान पर खेलकर कर्तव्य निभाने के लिए मुंबई फायर
ब्रिगेड की जयजयकार हो रही है। इस अग्निकांड में फोर्स के दो वरिष्ठ अधिकारी जान
गंवा चुके हैं,
और दो अधिकारी नवी
मुंबई के बर्न सेंटर में मृत्यु से जूझ रहे हैं। ऐसे में फायरमैनों को दंडित करने
की खबर आए, तो कैसा लगेगा? दो-चार नहीं, लगभग पूरी फायर ब्रिगेड की दो साल
की वेतन वृद्धि रोक ली गई है। मुंबई के म्यूनिसिपल कमिशनर ने पिछले साल अगस्त
महीने में 2400
फायर ब्रिगेड
कर्मचारियों की दो साल की वेतनवृद्धि रोकने का आदेश दिया था। इसे दुर्भाग्य ही कहा
जाएगा कि यह आदेश अब जाकर लागू किया जा रहा है। ऐसे वक्त जबकि फायर ब्रिगेड को
उसके काम के लिए ईनाम दिया जाना चाहिए था।
वैसे, अगस्त 2014 में किया गया अपराध गंभीर था। उसके
लिए निर्धारित सजा को नाजायज नहीं कहा जा सकता था। फायर ब्रिगेड को सूट सप्लाई
करने वाले ठेकेदार ने सूट सप्लाई किया ही नहीं। इसके बदले बाजार से खरीदने के लिए
हर फायर ब्रिगेड कर्मचारी को ठेकेदार ने नकद पैसे दे दिए। लगभग 2700 कर्मचारियों की फोर्स में 300 कर्मचारियों को छोड़कर सभी ने
ठेकेदार से पैसे ले लिए। मामला खुल गया और जांच हुई। अतिरिक्त आयुक्त की सिफारिश
पर आयुक्त सीताराम कुंटे ने 28 अगस्त
2014 को दंड का आदेश पारित कर दिया।
वक्त के इस मोड़ पर
मामला दंड के सही-गलत का न होकर, इसकी
'टाइमिंग' का है। साथ ही उस शर्मनाक वेतन का
भी है, जो इस कर्मचारियों को दिया जाता
है। फायर ब्रिगेड में उच्चतम स्तर पर भी मूल वेतन 6000 रुपये महीने से ज्यादा नहीं है। ऐसे में खुद की जान बचाने वाली पोषाक
के बदले पैसे कबूलने का आकर्षण कैसे रोक पाए होंगे? ठेकेदार को बीएमसी के अधिकृत स्टोर में सामान जमा करना होता है।
पोशाकें आई ही नहीं, और
ठेकेदार को पैसे अदा कर दिए गए। ठेकेदारों के मकड़जाल में फंसी बीएमसी में ऊपर के
स्तर तक जेबें गरम हुए बिना क्या यह संभव है?
पोशाक सप्लाई किए बिना एक मामूली हिस्सा गरीब फायर ब्रिगेड कर्मियों को टिकाने वाले ने केवल इनके साथ नहीं, पूरी मुंबई की सुरक्षा के साथ मजाक किया। बिना उच्चतम स्तर के संबंधों के क्या यह हिम्मत कोई जुटा सकता है? जो कुछ हुआ, उसके बाद बीएमसी और पूरे शहर में हंगामा मच जाना चाहिए था। इतना करने के बाद भी ठेका पास करके उसमें हिस्सा बंटाने वालों का कुछ नहीं बिगड़ा। जिनका ठेके या ठेकेदार से कुछ लेनादेना नहीं था, उन फायर ब्रिगेड कर्मचारी को दंड भुगतना पड़ रहा है। एक अंदाज के मुताबिक हर कर्मचारी का 35 हजार रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा।
पोशाक सप्लाई किए बिना एक मामूली हिस्सा गरीब फायर ब्रिगेड कर्मियों को टिकाने वाले ने केवल इनके साथ नहीं, पूरी मुंबई की सुरक्षा के साथ मजाक किया। बिना उच्चतम स्तर के संबंधों के क्या यह हिम्मत कोई जुटा सकता है? जो कुछ हुआ, उसके बाद बीएमसी और पूरे शहर में हंगामा मच जाना चाहिए था। इतना करने के बाद भी ठेका पास करके उसमें हिस्सा बंटाने वालों का कुछ नहीं बिगड़ा। जिनका ठेके या ठेकेदार से कुछ लेनादेना नहीं था, उन फायर ब्रिगेड कर्मचारी को दंड भुगतना पड़ रहा है। एक अंदाज के मुताबिक हर कर्मचारी का 35 हजार रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा।
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