अंधेरी के मल्टीप्लेक्स फन रिपब्लिक में मामी (मुम्बई एकेडमी ऑफ मूविंग इमेज) द्वारा आयोजित 11वें मुम्बई फिल्म महोत्सव के दौरान मंगलवार की सुबह मराठी फिल्म 'विहिर' (कुआं) देखने के लिए उमड़े दर्शकों में से ज्यादातर के मन में कहीं न कहीं उत्सुकता जरूर थी कि अमिताभ बच्चन की प्रोडक्शन कम्पनी ए.बी.कॉर्प्स ने आखिर क्या सोचकर इस फिल्म में पैसे लगाए हैं! क्या रह-रह कर क्षेत्रीयतावादी तत्वों के निशाने पर रहे बिग बी ने विवादों का मुंह बंद करने के लिए मराठी फिल्म का निर्माण किया है? 'नहीं', कहना है 'विहिर' के युवा निर्देशक उमेश विनायक कुलकर्णी का, 'इस फिल्म की योजना काफी पहले बनी थी। स्क्रिप्ट पूरी होने के बाद पिछले साल सितम्बर में शूटिंग शुरू हुई थी।' पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित उमेश कुलकर्णी की डिप्लोमा फिल्म 'गिरणी' ने राष्ट्रपति का गोल्ड मेडल जीता था। कठिन संघर्ष के बाद मित्रों के सहयोग से बनी उनकी पहली फीचर फिल्म 'वळू' (सांड) ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में खूब प्रशंसा पाई। पुणे फिल्म संस्थान के पूर्व छात्रों के एक मिलन समारोह में उमेश जब जया बच्चन से मिले तो जया ने उन्हें वहीं फिल्म बनाने का ऑफर दे डाला। उमेश ने अपने बचपन की घटनाओं से प्रेरित 'विहिर' की आउटलाइन जया को सुनाई, जो उन्हें पसंद आई और गिरीश कुलकणीर् तथा सती भावे ने पटकथा लेखन शुरू कर दिया। जया और अमिताभ बच्चन इससे पहले अपने मेकअप मैन दीपक सावंत की मराठी फिल्म 'अक्का' में अतिथि भूमिका कर चुके हैं। फिल्म निर्माण में ए.बी.कॉर्प्स के दुबारा सक्रिय होने के बाद 'विहिर' उनकी पहली प्रदर्शित फिल्म है। 'विहिर' दरअसल बचपन और जवानी के दोराहे पर खड़े दो नौजवानों समीर और नचिकेत के भावनात्मक रिश्तों पर आधारित संवेदनशील फिल्म है। गांव के जिस कुएं में समीर तैराक बनने की प्रैक्टिस किया करता था, उसी कुएं में उसके सबसे घनिष्ट मित्र नचिकेत की डूबने से मौत हो जाती है। जीवन में किसी अंतरंग की मौत का पहला-पहला अनुभव समीर को विचलित कर देता है। उसकी भटकी मनोदशा उसके घर के लोग नहीं समझ पाते लेकिन उसे जीवन का मर्म समझाने में सफल रहता है सुदूर गांव का एक गरेड़िया। 'विहिर' को पुसान और लंदन के फिल्म समारोहों में भी अच्छी सराहना मिली है। मामी के मेले में 'विहिर' के अलावा और भी कई मराठी फिल्में दर्शकों के मन को छूने में कामयाब रहीं। 'इंडियन फ्रेम' खंड में शामिल रेणुका शहाणे निर्देशित 'रीता', सचिन कुंडालकर निर्देशित 'गंधा', सुमित्रा भावे एवं सुनील सुखठणकर निर्देशित 'एक कप च्या' को सबने पसंद किया। विश्व सिनेमा के पटल पर मराठी फिल्मों के बढ़ते कदम मराठी सिनेमा के लिए शुभ एवं सकारात्मक संकेत हैं।
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