इन दिनों जब शिवसेना भारत के दो महान क्रिकेटरों सचिन तेंडुलकर और सुनील गावस्कर को केवल मराठी पहचान तक सीमित करके उनके बीच बदमजा तुलना कर रही है, तब यह जानना दिलचस्प होगा कि कुछ दिनों पहले ही शिवसेना के पूर्व सांसद मोहन रावले ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर गावस्कर को नहीं, तेंडुलकर को भारत रत्न देने की मांग की थी। 6 नवंबर 2009 को रावले ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि क्रिकेट में सचिन के महान योगदान के देखते हुए इस शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के सेंट्रल हॉल में सचिन को आमंत्रित करके उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। सचिन के रेकॉर्डों का विस्तार से वर्णन करते हुए उन्हें भारतरत्न देने की भी मांग की। सचिन द्वारा खुद को मराठी से पहले भारतीय बताने पर शिवसेना ने जब उन पर आरोपों की बौछार शुरू कर दी, तो रावले खामोश हो गए। वह शिवसेना से सबसे ज्यादा पांचबार लोकसभा पहुंचे हैं। वह पहली बार 2009 में ही हारे हैं। शिवसेना के पूर्व सांसद ने जिसके लिए भारत रत्न की मांग की, उसी का खुद को भारतीय बताना अब शिवसेना को रास नहीं आ रहा। सचिन पर शिवसेना में मतभेद : सचिन को लेकर शिवसेना में अंदर ही अंदर मतभेद उभर रहे हैं। मंगलवार को शिवसेना सांसद संजय राउत के निवास पर शिवसेना सांसदों का डिनर था। वहां कुछ सांसदों ने कहा कि सचिन को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। वह महाराष्ट्र के युवाओं का आदर्श हैं। यह भी कहा जा रहा है कि गावस्कर के लिए शिवसेना का यह कहना कि उन्होंने महाराष्ट्र के खिलाड़ियों को तरजीह दी, उत्तर भारत के उन क्रिकेटरों के आरोपों की पुष्टि है जो यह कहते रहे हैं कि उनके साथ क्षेत्रीय आधार पर भेदभाव हुआ। एक क्रिकेटर सांसद ने कहा कि बिशन सिंह बेदी और कपिल देव के कप्तान बनने के बाद मुंबई के बाहर के क्रिकेटरों को मौका मिलना शुरू हुआ। गावस्कर के समय में भारतीय टीम में 8-8 महाराष्ट्रीय खिलाड़ी खेले।
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