बीते साल में महाराष्ट्र की राजनीति को हिलाने वाले सिंचाई विभाग के घोटाले
में डैम बनाने के लिए दी जाने वाली घूस का रेट कार्ड सामने आया है। विभाग के ही एक
ठेकेदार ने पहली बार राज्य में डैम बनाने का ठेका हासिल करने के लिए अलग-अलग
अधिकारियों को दी जाने वाली घूस का खुलासा किया है। इसमें क्लर्क से लेकर विधायक
तक की जेब में जाने वाले हिस्से को दिखाया गया है। सभी का हिस्सा प्रॉजेक्ट की
लागत से ही निकलता है और सबको हिस्सा देने पर ही ठेका मिल पाता है। ठेकेदार के
मुताबिक सबका हिस्सा ही प्रॉजेक्ट की कुल लागत का 22 फीसदी बैठ जाता है।
पुणे के इस ठेकेदार ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उसने हाल ही में राज्य सरकार और गवर्नर को एक लेटर लिखा है। इसमें बताया गया है कि कई घोटाले कर चुके सिंचाई विभाग के ठेके हासिल करने के लिए किस-किस अधिकारी को घूस दी जाती है। इस लेटर के मुताबिक, एक प्रॉजेक्ट हासिल करने के लिए क्लर्क, विभाग के अकाउंटेंट और स्टाफ, एग्जेक्युटिव इंजिनियर, सूपरिटेंडिंग इंजिनियर, उसके स्टाफ, चीफ इंजिनियर, एग्जेक्युटिव डायरेक्टर, सेक्रटरी, कॉर्पोरेशन के चेयरमैन और स्थानीय विधायक तक को घूस पहुंचती है।
पुणे के इस ठेकेदार ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उसने हाल ही में राज्य सरकार और गवर्नर को एक लेटर लिखा है। इसमें बताया गया है कि कई घोटाले कर चुके सिंचाई विभाग के ठेके हासिल करने के लिए किस-किस अधिकारी को घूस दी जाती है। इस लेटर के मुताबिक, एक प्रॉजेक्ट हासिल करने के लिए क्लर्क, विभाग के अकाउंटेंट और स्टाफ, एग्जेक्युटिव इंजिनियर, सूपरिटेंडिंग इंजिनियर, उसके स्टाफ, चीफ इंजिनियर, एग्जेक्युटिव डायरेक्टर, सेक्रटरी, कॉर्पोरेशन के चेयरमैन और स्थानीय विधायक तक को घूस पहुंचती है।
लेटर के मुताबिक किसी भी टेंडर की बोली लगाने वाले को
डिपार्टमेंट की ओर से फिक्स की गई रकम सभी हिस्सेदारों को कैश में देनी होती है।
बिल क्लियर करने वाले अधिकारी भी अपना हिस्सा मांगते हैं। बिल का करीब 10 फीसदी हिस्सा तो एग्जिक्युटिव
अधिकारियों को ही जाता है। इसके अलावा एक अजस्टमेंट अमाउंट भी होता है जो ठेकेदार
और अधिकारियों के बीच बराबर बंटता है। जो भी विभाग के इस अलिखित कायदे को मानने से
मना करता है सिंचाई विभाग के अधिकारी उससे 'कड़ाई से निपटते' हैं।
इस पर विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि प्रॉजेक्ट्स काफी ऊंची लागत पर दिए जाते हैं। राजनेताओं के परिचित ठेकेदार घटिया काम करते हैं और प्रफेशनल ठेकेदारों को तो नेता अपने हस्तक्षेप से बाहर कर देते हैं। राजनेता भी छोटे-मोटे ठेकेदारों के पार्टनर बन जाते हैं और बदले में ठेकेदारों को राजनीति में जगह मिल जाती है।
इस पर विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि प्रॉजेक्ट्स काफी ऊंची लागत पर दिए जाते हैं। राजनेताओं के परिचित ठेकेदार घटिया काम करते हैं और प्रफेशनल ठेकेदारों को तो नेता अपने हस्तक्षेप से बाहर कर देते हैं। राजनेता भी छोटे-मोटे ठेकेदारों के पार्टनर बन जाते हैं और बदले में ठेकेदारों को राजनीति में जगह मिल जाती है।
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