राज्य सरकार के तमाम सरकारी बोर्डों और समितियों के अध्यक्ष अपना
बोरिया-बिस्तर बांधकर कुर्सी छोड़ने को तैयार बैठे हैं। उन्हें अंदेशा है कि किसी
भी दिन उनके पास कुर्सी खाली करने का फरमान पहुंच सकता है। अगर उच्चस्तरीय सरकारी
सूत्रों पर भरोसा करें, तो 30 से ज्यादा सरकारी बोर्डों और कई सरकारी समितियों को
बर्खास्त करने पर इन दिनों मंत्रिमंडल में विचार चल रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने सामान्य प्रशासन विभाग से सभी सरकारी बोर्डों की आर्थिक स्थिति और उनके कामकाज के बारे में रिपोर्ट मांगी है। खबर यह भी है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने सरकार बदलते ही इस रिपोर्ट पर काम शुरू कर दिया था, क्योंकि मंत्रालय के अफसर और बाबू जानते हैं कि सरकार जल्द से जल्द पुराने लोगों को हटाकर अपने लोगों को नियुक्त करना चाहेगी। नए साल में सबसे पहले उन 30 सरकारी बोर्डों पर गाज गिरेगी, जिनमें करप्शन के मामले उजागर हुए हैं।
राज्य में तकरीबन 70 सरकारी बोर्ड हैं। इनमें से कई बोर्डों के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। इसलिए ये बोर्ड प्रतिष्ठा और कमाई का जरिया हैं। सत्ताधारी पार्टियां इनका इस्तेमाल असंतुष्टों को संतुष्ट करने और अपने लोगों को उपकृत करने के लिए करती रही हैं। पिछली सरकार में भी कांग्रेस और एनसीपी ने सरकारी बोर्ड के अध्यक्ष पद आपस में बांट लिए थे।
सरकार में शामिल पार्टियों में सबसे ज्यादा क्रेज जिन बोर्डों का कब्जा पाने के लेकर हैं उनमें म्हाडा, सिडको, स्लम बोर्ड, वन विकास बोर्ड, अर्बन इंडस्ट्रीज डिवेलपमेंट बोर्ड, ऐग्रिकल्चर मार्केंटिग बोर्ड, पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और महिला आयोग के अध्यक्ष शामिल हैं। इसके अलावा, देवस्थान समितियां और विविध पुरस्कार चयन समितियों के लिए भी लॉबिंग चल रही है।
सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने सामान्य प्रशासन विभाग से सभी सरकारी बोर्डों की आर्थिक स्थिति और उनके कामकाज के बारे में रिपोर्ट मांगी है। खबर यह भी है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने सरकार बदलते ही इस रिपोर्ट पर काम शुरू कर दिया था, क्योंकि मंत्रालय के अफसर और बाबू जानते हैं कि सरकार जल्द से जल्द पुराने लोगों को हटाकर अपने लोगों को नियुक्त करना चाहेगी। नए साल में सबसे पहले उन 30 सरकारी बोर्डों पर गाज गिरेगी, जिनमें करप्शन के मामले उजागर हुए हैं।
राज्य में तकरीबन 70 सरकारी बोर्ड हैं। इनमें से कई बोर्डों के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। इसलिए ये बोर्ड प्रतिष्ठा और कमाई का जरिया हैं। सत्ताधारी पार्टियां इनका इस्तेमाल असंतुष्टों को संतुष्ट करने और अपने लोगों को उपकृत करने के लिए करती रही हैं। पिछली सरकार में भी कांग्रेस और एनसीपी ने सरकारी बोर्ड के अध्यक्ष पद आपस में बांट लिए थे।
सरकार में शामिल पार्टियों में सबसे ज्यादा क्रेज जिन बोर्डों का कब्जा पाने के लेकर हैं उनमें म्हाडा, सिडको, स्लम बोर्ड, वन विकास बोर्ड, अर्बन इंडस्ट्रीज डिवेलपमेंट बोर्ड, ऐग्रिकल्चर मार्केंटिग बोर्ड, पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और महिला आयोग के अध्यक्ष शामिल हैं। इसके अलावा, देवस्थान समितियां और विविध पुरस्कार चयन समितियों के लिए भी लॉबिंग चल रही है।
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