मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने देवेंद्र फडनवीस की राह में आते
हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा पेश किया था, लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ
अलग है। यह केवल उनकी व्यक्तिगत इच्छा या महत्वाकांक्षा नहीं थी, बल्कि गडकरी को अपने 'अच्छे मित्र' और एनसीपी चीफ शरद पवार का
इसके लिए समर्थन हासिल था। पवार ने राज्य में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को बिना
शर्त समर्थन देने की घोषणा की थी।
पता चला है कि 18 अक्टूबर को एनसीपी की ओर से बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा करने के कुछ ही दिनों में परदे के पीछे काफी हलचल हुई थी। महाराष्ट्र एनसीपी के सूत्रों ने ईटी को बताया कि 21 अक्टूबर को पवार के एक वरिष्ठ सहयोगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क कर गडकरी को मुख्यमंत्री बनाने की एनसीपी की इच्छा जाहिर की थी।
पता चला है कि 18 अक्टूबर को एनसीपी की ओर से बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा करने के कुछ ही दिनों में परदे के पीछे काफी हलचल हुई थी। महाराष्ट्र एनसीपी के सूत्रों ने ईटी को बताया कि 21 अक्टूबर को पवार के एक वरिष्ठ सहयोगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क कर गडकरी को मुख्यमंत्री बनाने की एनसीपी की इच्छा जाहिर की थी।
उस समय 63 विधायकों वाली शिव सेना ने गठबंधन में अपनी पूर्व सहयोगी
बीजेपी को समर्थन नहीं दिया था, जो बहुमत से 23 सीटें पीछे थी। माना जा रहा
है कि एनसीपी की ओर से समर्थन देने की पेशकश बीजेपी को शिव सेना के मोलभाव का
मुकाबला करने में मदद के लिए थी, लेकिन पवार के दूत की गडकरी को मुख्यमंत्री बनाने की एनसीपी
की इच्छा जाहिर करने से यह संकेत मिल रहा है कि पवार बिना शर्त समर्थन के पीछे
अपनी एक चाहत पूरी करवाने के लिए भी जोर डाल रहे थे। पवार और गडकरी अच्छे दोस्त
माने जाते हैं और सूत्रों का कहना है कि एनसीपी की लीडरशिप महाराष्ट्र में सरकार
चलाने के लिए गडकरी को बेहतर मानती है।
सूत्रों ने बताया कि मोदी ने पवार के दूत की एनसीपी की पसंद की बात सुनी, लेकिन उन्होंने अपना फैसला नहीं बताया। इससे अगले दिन गडकरी ने अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए 40 से अधिक बीजेपी विधायकों को नागपुर में अपने निवास पर बुलाया था। इन विधायकों ने उनसे मुख्यमंत्री बनने की गुजारिश की थी। इससे बीजेपी की टॉप लीडरशिप भी हैरानी में पड़ गई थी और अटकलें लगने लगी थी कि आरएसएस गडकरी का समर्थन कर सकता है। गडकरी की वरिष्ठता और मुख्यमंत्री बनने की उनकी चाहत किसी से नहीं छिपी थी और नागपुर से ही संबंध रखने वाले फडनवीस के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा भी रहता है। पार्टी के पूर्व प्रेजिडेंट राजनाथ सिंह ने आरएसएस के कद्दावर नेता सुरेश सोनी के कहने पर फडनवीस को महाराष्ट्र बीजेपी का प्रमुख बनाया था और इस कदम को राज्य की राजनीति में गडकरी के पर कतरने के तौर पर देखा गया था।
हालांकि मोदी के फडनवीस को पसंद करने और आरएसएस के भी मोदी की इच्छा के साथ जाने से पवार और गडकरी का यह खेल कमजोर पड़ गया। इसके बाद शिव सेना ने भी मौके की नजाकत को भांपते हुए घोषणा कर दी कि वह बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री के लिए चुने गए किसी भी व्यक्ति को अपना समर्थन देगी। इसके साथ ही एनसीपी की राज्य में सरकार बनाने के लिए मोलभाव करने की कोशिश भी बेकार हो गई।
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिव सेना के सत्ता में दोबारा एक साथ आने से एनसीपी की उपयोगिता लगभग खत्म हो जाएगी। पवार ने सोमवार को ईटी से कहा था कि बीजेपी को सरकार बनाने में मदद करने के लिए उनकी पार्टी विश्वास मत के दौरान वोटिंग में मौजूद नहीं रहेगी।
सूत्रों ने बताया कि मोदी ने पवार के दूत की एनसीपी की पसंद की बात सुनी, लेकिन उन्होंने अपना फैसला नहीं बताया। इससे अगले दिन गडकरी ने अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए 40 से अधिक बीजेपी विधायकों को नागपुर में अपने निवास पर बुलाया था। इन विधायकों ने उनसे मुख्यमंत्री बनने की गुजारिश की थी। इससे बीजेपी की टॉप लीडरशिप भी हैरानी में पड़ गई थी और अटकलें लगने लगी थी कि आरएसएस गडकरी का समर्थन कर सकता है। गडकरी की वरिष्ठता और मुख्यमंत्री बनने की उनकी चाहत किसी से नहीं छिपी थी और नागपुर से ही संबंध रखने वाले फडनवीस के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा भी रहता है। पार्टी के पूर्व प्रेजिडेंट राजनाथ सिंह ने आरएसएस के कद्दावर नेता सुरेश सोनी के कहने पर फडनवीस को महाराष्ट्र बीजेपी का प्रमुख बनाया था और इस कदम को राज्य की राजनीति में गडकरी के पर कतरने के तौर पर देखा गया था।
हालांकि मोदी के फडनवीस को पसंद करने और आरएसएस के भी मोदी की इच्छा के साथ जाने से पवार और गडकरी का यह खेल कमजोर पड़ गया। इसके बाद शिव सेना ने भी मौके की नजाकत को भांपते हुए घोषणा कर दी कि वह बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री के लिए चुने गए किसी भी व्यक्ति को अपना समर्थन देगी। इसके साथ ही एनसीपी की राज्य में सरकार बनाने के लिए मोलभाव करने की कोशिश भी बेकार हो गई।
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिव सेना के सत्ता में दोबारा एक साथ आने से एनसीपी की उपयोगिता लगभग खत्म हो जाएगी। पवार ने सोमवार को ईटी से कहा था कि बीजेपी को सरकार बनाने में मदद करने के लिए उनकी पार्टी विश्वास मत के दौरान वोटिंग में मौजूद नहीं रहेगी।
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