महाराष्ट्र में अब तक का सबसे बड़ा एजुकेशन घोटाला सामने आया है। करीब दस हजार करोड़ रुपये के इस घोटाले में अब तक पांच लोगों को गिरफ्तार
किया जा चुका है। इस केस में महाराष्ट्र के एक पूर्व मंत्री भी
जांच के दायरे में हैं। इस घोटाले में महाराष्ट्र सरकार
के दो विभागों के खजाने से प्रति स्टूडेंट के नाम पर 48 हजार रुपये निकाल लिए गए पर इन
स्टूडेंट्स को खुद पता नहीं कि वे किस कॉलेज में पढ़ते हैं।
गढ़चिरौली के स्पेशल क्राइम ब्रांच यूनिट के इंस्पेक्टर रवींद्र
पाटील ने शुक्रवार को एनबीटी को विस्तार से इस घोटाले की जानकारी दी। श्री पाटील
के अनुसार, वर्धा में
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति है जिसकी स्थापना महात्मा गांधी ने की थी। महाराष्ट्र की
एक पावरफुल महिला के एक बेहद करीबी ने इंडिया नॉलेज कॉर्पोरेशन और राष्ट्रभाषा
प्रचार समिति के बीच एक अग्रीमेंट करवाया। इस अग्रीमेंट के बाद एक नई समिति का गठन
हुआ जिसका नाम रखा गया- राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने यूजीसी से पांच टेक्निकल कोर्सज की डिस्टेंश एजुकेशन की परमिशन मांगी। यूजीसी ने पांच साल के लिए यह परमिशन दे भी दी। परमिशन के तहत ये कोर्स राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को शुरू करवाने थे पर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने यह अधिकार अपनी मर्जी से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल को दे दिया।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने यूजीसी से पांच टेक्निकल कोर्सज की डिस्टेंश एजुकेशन की परमिशन मांगी। यूजीसी ने पांच साल के लिए यह परमिशन दे भी दी। परमिशन के तहत ये कोर्स राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को शुरू करवाने थे पर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने यह अधिकार अपनी मर्जी से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल को दे दिया।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल ने इसके लिए कागज पर पूरे
महाराष्ट्र में 262 स्टडी
सेंटर दिखाए। यूजीसी परमिशन के तहत एक स्टडी सेंटर अपने सेंटर में एक कोर्स के लिए
अधिकतम 60 स्टूडेंट्स
रख सकता था। इस तरह हर सेंटर में अधिकतम 300 स्टूडेंट्स होने चाहिए थे पर कई
स्टडी सेंटर ने अपने यहां एसटी, एससी, ओबीसी व
ऐंटी टीडी आरक्षण के तहत 600-600 स्टूडेंट्स तक रेकॉर्ड में दिखाए। हालांकि हकीकत में एक भी स्टूडेंट
नहीं था। यहां तक कि किसी भी स्टडी सेंटर के लिए कॉलेज जैसा कोई परिसर भी नहीं था।
अलबत्ता, किसी भी
हाउसिंग सोसाइटी में छोटे-छोटे एक या दो घर ले लिए गए थे जहां एक-दो चपरासी और चंद
अन्य लोग रखे गए थे।
हर टेक्निकल कोर्स की फीस प्रति स्टूडेंट प्रति साल 48 हजार रुपये थी पर इस स्टडी सेंटर
में आरक्षित श्रेणी के स्टूडेंट की पूरी फीस सरकार को भरनी थी। एसटी श्रेणी के
स्टूडेंट की फीस भरने का यह जिम्मा महाराष्ट्र सरकार के विभाग अकादमिक आदिवासी
विकास प्रकल्प कार्यालय के पास था जबकि एसटी को छोड़कर शेष एससी, ओबीसी व ऐंटि टीडी आरक्षित
श्रेणियों के स्टूडेंट की फीस समाज कल्याण विभाग को देनी होती है।
इस 48 हजार रुपये में 2300 रुपये की रकम सीधे स्टूडेंट के अकाउंट में, 9,000 रुपये राष्ट्रभाषा प्रचार समित ज्ञान मंडल के अकाउंट में जबकि शेष करीब 35 हजार रुपये की रकम स्टडी सेंटर के अकाउंट में ट्रासंफर होनी थी। यह सारी रकम दोनों सरकारी विभागों से ट्रांसफर हुई भी पर हकीकत यह है कि इन किसी भी 262 स्टडी सेंटर में कोई भी स्टूडेंट पिछले पांच साल में कभी पढ़ा ही नहीं।
इस 48 हजार रुपये में 2300 रुपये की रकम सीधे स्टूडेंट के अकाउंट में, 9,000 रुपये राष्ट्रभाषा प्रचार समित ज्ञान मंडल के अकाउंट में जबकि शेष करीब 35 हजार रुपये की रकम स्टडी सेंटर के अकाउंट में ट्रासंफर होनी थी। यह सारी रकम दोनों सरकारी विभागों से ट्रांसफर हुई भी पर हकीकत यह है कि इन किसी भी 262 स्टडी सेंटर में कोई भी स्टूडेंट पिछले पांच साल में कभी पढ़ा ही नहीं।
तो यह रकम सरकार से ली कैसे गई? इंस्पेक्टर रवींद्र पाटील ने
एनबीटी को बताया कि राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल के लोगों ने पूरे
महाराष्ट्र में अपने एजेंट गांव गांव में भेजे। इन एजेंटों ने आरक्षित श्रेणी के
लोगों से किसी सरकारी स्कीम के बहाने जरूरी दस्तोवज लिए और फिर उनकी झेराक्स
करवाकर दोनों सरकारी विभागों अकादमिक आदिवासी विकास कार्यालय व समाज कल्याण विभाग
को भेज दिए। फिर इन दस्तावेजों के आधार पर इन दोनों सरकारी विभागों से रकम रिलीज
की जाती रही।
यदि कायदे से देखा जाए तो इस घोटाले में सिर्फ राष्ट्रभाषा प्रचार
समिति ज्ञान मंडल ही आरोपी माना चाहिए पर हकीकत में दोनों सरकारी विभाग भी उतने ही
दोषी हैं। इसकी वजह है स्टूडेंट के अकाउंट नंबर जिसमें प्रति स्टूडेंट 2300 रुपये जमा होने थे। राष्ट्रभाषा
प्रचार समिति ज्ञान मंडल वालों ने दोनों सरकारी विभागों को स्टूडेंट के जो बैंक
अकाउंट नंबर दिए, वे सब
अंदाज से दिए नंबर थे जिनके आखिरी अंक 11-11 या 12-12 से खत्म होते थे।
जब इन अकाउंट में चेक भेजे गए तो स्वाभाविक है वे रिटर्न हो गए। रिटर्न होकर ये चेक आए इन दो सरकारी विभागों में ही, जहां से ये जारी किए गए थे। ऐसे में इन सरकारी विभागों के कुछ क्लर्कों ने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल के लोगों से कुछ फर्जी अकाउंट खुलवाए और फिर उसमें यह रकम ट्रांसफर की गई। इंस्पेक्टर रवींद्र पाटील के अनुसार, यदि पिछले 5 साल से सभी 262 सेंटर का पूरा हिसाब लगाया जाए और इन 262 सेंटरों के 600 स्टूडेंट्स के नाम पर प्रति स्टूडेंट 48 हजार रुपये का पूरा गुणा किया जाए तो यह घोटाला कई कई हजार हजार करोड़ रुपये का बैठता है।
जब इन अकाउंट में चेक भेजे गए तो स्वाभाविक है वे रिटर्न हो गए। रिटर्न होकर ये चेक आए इन दो सरकारी विभागों में ही, जहां से ये जारी किए गए थे। ऐसे में इन सरकारी विभागों के कुछ क्लर्कों ने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल के लोगों से कुछ फर्जी अकाउंट खुलवाए और फिर उसमें यह रकम ट्रांसफर की गई। इंस्पेक्टर रवींद्र पाटील के अनुसार, यदि पिछले 5 साल से सभी 262 सेंटर का पूरा हिसाब लगाया जाए और इन 262 सेंटरों के 600 स्टूडेंट्स के नाम पर प्रति स्टूडेंट 48 हजार रुपये का पूरा गुणा किया जाए तो यह घोटाला कई कई हजार हजार करोड़ रुपये का बैठता है।
अकादमिक आदिवासी विकास कार्यालय व समाज कल्याण विभाग पूर्व में जिस
मंत्री के अंडर में आते हैं, जांच चल रही है कि कहीं उनकी तो इस घोटाले में कोई भूमिका तो
नहीं थी। उम्मीद की जा रही है कि नई सरकार यह केस स्टेट सीआईडी को ट्रांसफर कर
सकती है। पूर्व मंत्री, राष्ट्रभाषा
प्रचार समिति, राष्ट्रभाषा
प्रचार समिति ज्ञान मंडल से जुड़े बड़े लोगों और महाराष्ट्र की एक पॉवरफुल महिला व
उसके करीबी से पूछताछ उसी के बाद होने की संभावना है।
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