Wednesday, December 5, 2012

'चैत्यभूमि' डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के स्मारक के नाम


 डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस से एक दिन पहले इंदु मिल की जमीन उनके स्मारक के नाम करने की रणनीति का वही असर हुआ, जिसकी सरकार को उम्मीद थी। 'चैत्यभूमि' से लगा शिवाजी पार्क इलाका उत्सव से गूंज उठा। आंबेडकरी अनुयायियों ने पटाखे फोड़े, मिठाइयां बांटीं और ढोल-ताशों की धुन पर समूह नाचने लगे। गुरुवार को 'महापरिनिर्वाण दिवस' के लिए हर साल की तरह लाखों का जनसैलाब यहां उमड़ेगा, तो हाल क्या होगा, इसके कयास लगाए जा रहे हैं। लगभग हर राजनीतिक दल ने 'चैत्यभूमि' से लगी इंदु मिल की जमीन बाबासाहेब के स्मारक को देने के केंद्र सरकार के निर्णय का स्वागत किया। पूरा देश में जहां संसद में एफडीआई की बहस और उस पर होने वाले मतदान को लेकर उत्सुकता बनी हुई थी, आंबेडकर अनुयायियों में स्मारक की घोषणा को लेकर कुतूहल बना हुआ था। घोषणा के तत्काल बाद मिल के भीतर जबरन घुसने की मंशा व्यक्त कर चुके दलित नेता रामदास आठवले समर्थकों के साथ इंदु मिल पहुंच गए। वहां टेलिविजन कैमरों से घिरे उनके समर्थकों ने जश्न मनाया। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री निवास 'वर्षा' पहुंचकर वहां पृथ्वीराज चव्हाण को पुष्पगुच्छ पेश करके उनका अभिनंदन किया। 

वहीं, आठवले के कट्टर प्रतिद्वंद्वी आनंदराज आंबेडकर भी इंदु मिल पहुंचे। उनके समर्थकों ने मिठाइयां बांटीं और उन्हें कंधे पर उठाकर नाचे। पिछले साल 6 दिसंबर को आनंदराज अपने समर्थकों के साथ मिल के भीतर घुस गए थे। कई दिन भीतर रहने के बाद सरकार के अनुरोध पर उन्होंने आंबेडकर और भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं बंद पड़ी मिल के भीतर स्थापित करने के बाद कब्जा छोड़ दिया था। वे डॉ आंबेडकर के पौत्र हैं और अपने भाई पूर्व सांसद प्रकाश आंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए वर्ष भर से सक्रिय हुए हैं।
 

वैसे, महापरिनिर्वाण दिन लाखों की भीड़ के बावजूद हर वर्ष बेहद शालीन और अनुशासित सलीके से मनाया जाता है। डॉ आंबेडकर को भगवान का दर्जा देने वाले उनके अनुयायी एक कमरे के 'चैत्यभूमि' स्मारक के सामने मोमबत्तियां जलाते हैं। इनमें अधिकांश वंचित और गरीब वर्ग साधनविहीन वर्ग के लोग होते हैं। इनके लिए मुंबई के कई दर्जन संस्थाएं खाने से लेकर पानी की मुफ्त व्यवस्था करती हैं। औरतों और बच्चों के साथ हजारों परिवार शिवाजी पार्क मैदान और समुद्र के किनारे पर रात बिताते हैं। देशभर के दादर की और आनेवाली ट्रेनों में ठसाठस भरी आंबेडकर अनुयायियों की भीड़ रेलवे की नियमित व्यवस्था को हर बार ध्वस्त कर देती है। इनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राजनेता श्रेय लूटने के लिए किस तरह कोशिश करते हैं और जनसामान्यों का समूह इस पर कैसा प्रतिसाद देता है, यह गुरुवार को साफ होगा!
 

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