Wednesday, May 12, 2010

साड़ी पहनने के लिए दबाव डालना 'क्रूरता' के तहत नहीं आता।

साड़ी पहनने में बेशक उलझन भरी ड्रेस हो, खासकर पंजाबी ड्रेस सलवार सूट के मुकाबले में, लेकिन इसके नाम पर शादी को खत्म नहीं किया जा सकता। बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया है। जस्टिस ए. पी. देशपांडे और जस्टिस रेखा की एक डिविजन बेंच ने होम्योपैथिक डॉक्टर अलका (बदला हुआ नाम) की याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक ससुराल वालों का साड़ी पहनने के लिए दबाव डालना 'क्रूरता' के तहत नहीं आता। अलका और आनंद की शादी जून 2003 को हुई थी। जल्द ही पति और ससुराल वालों से लड़ाई झगड़े के बाद अलका मायके आकर रहने लगी। अलका ने न सिर्फ पति, सास और पति की दो बहनों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और क्रिमिनल केस दायर किया, बल्कि फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए भी पिटिशन डाल दी। इसमें अलका ने क्रूरता के कुछ उदाहरण दिए, जिनमें पति के अवैध संबंध को प्रमुख उदाहरण बताया गया है। इसके अलावा एक शिकायत यह है कि ससुराल वाले साड़ी पहनने का दबाव डालते हैं। फैमिली कोर्ट ने अलका की याचिका रद्द कर दी थी, जिसके खिलाफ अलका हाई कोर्ट पहुंची थीं। हाई कोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। अन्य आरोपों को साबित करने के लिए अलका ठोस सबूत नहीं जुटा सकीं, इसलिए कोर्ट ने तलाक की पिटिशन खारिज कर दी। साड़ी वाले मामले पर कोर्ट का कहना था कि साड़ी पहनने के लिए कहना उस 'क्रूरता' के दायरे में नहीं है, जिसके तहत तलाक दे दिया जाए।

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