Sunday, November 11, 2012

तीसरे जिले की मांग पूरी करना सरकार के लिए असंभव हो सकता है और मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में जा सकता है।


देश के सबसे बड़े जिले ठाणे के विभाजन की 27 साल पुरानी मांग ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ी है। कोकण के विभागीय कमिश्नर विजय नाहटा ने नए जिले का मुख्यालय पालघर को बनाने पर सहमति जताई है। कमिश्नर ने विभागीय अधिकारियों तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के स्थानीय नेताओं के साथ बैठक के बाद पालघर को नया मुख्यालय बनाने की सहमति से जुड़ी रिपोर्ट राज्य सरकार के पास भेजी है। इस रिपोर्ट के बाद जिला विभाजन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। कई लोगों ने जिले को 3 भागों में बांटने की मांग की है, जिससे विभाजन की सरकारी हलचल पर एक बार फिर ब्रेक लगने की आशंका जताई जा रही है। ठाणे का विभाजन कर दूसरा जिला बनाने पर करीब 500 करोड़ रुपये का खर्च है, जिसका बोझ राज्य सरकार पर पडे़गा। ऐसे में, तीसरे जिले की मांग पूरी करना सरकार के लिए असंभव हो सकता है और मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में जा सकता है। 
करीब सवा करोड़ आबादी वाला ठाणे जिला 9558 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जिसमें शहरी, ग्रामीण, आदिवासी, सागरीय क्षेत्र शामिल हैं। इनमें ग्रामीणों, आदिवासियों की अलग समस्या है, तो मछुआरों का अपना अलग प्रश्न है, शहरी भागों के लोगों की अपनी अलग समस्या है। फिलहाल ठाणे जिले में ठाणे, डोंबिवली-कल्याण, उल्हासनगर, भिवंडी, वसई, पालघर, डहाणु, तलासरी, जव्हार, मोखाडा, वाडा, शहापुर, मुरबाड आदि 13 तालुकाएं शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार को भेजी रिपोर्ट में कोंकण विभागीय कमिश्नर ने नए बनाए जाने वाले जिले पालघर में जव्हार, वाडा, मोखाडा, तलासरी, विक्रम गढ़, वसई, पालघर को शामिल करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में ठाणे जिले में ठाणे, डोंबिवली-कल्याण, मीरा-भाईंदर, भिवंडी, अंबरनाथ, शहापुर को रखने की बात कही गई है। 
ठाणे विभाजन की पहली बार चर्चा तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने 1985 में शहापुर की जनसभा में की थी। 1993 में ठाणे के आदिवासी परिसर में कुपोषण के चलते कई मौतें हुईं थी, जिसके बाद जिला विभाजन की मांग ने जोर पकड़ा। इसके बाद विभाजन की मांग को लेकर कई बार आंदोलन और मोर्चे हुए। बीते कुछ सालों में कई बार नेताओं द्वारा विभिन्न अवसरों पर जिला को शीघ्र विभाजित करने की घोषणा की गई। विगत 15 अगस्त को जिले का विभाजन किए जाने की प्रबल संभावना बनी थी, लेकिन मुंबई स्थित मंत्रालय में लगी भीषण आग और मुख्यालय को लेकर हुए विवाद के चलते अंतिम समय में विभाजन टल गया था। 
पहले जिले को दो भागों में बाटने की मांग की गई थी, जिसके तहत एक भाग में सभी मनपा तथा नपा क्षेत्र और दूसरे भाग में आदिवासी तथा ग्रामीण परिसर को रखा जाना था। बाद में शहरी, सागरीय तथा पहाड़ी भागों को लेकर जिले को तीन भागों में बाटने की मांग उठी। पालघर के अलावा आदिवासी परिसर जव्हार को भी मुख्यालय बनाने की चर्चा चली। जानकारों के मुताबिक जव्हार के आदिवासी परिसर होने तथा रेलवे नेटवर्क से सीधे नहीं जुड़े होने से चर्चा आगे नहीं बढ़ी। कुछ राजनेताओं ने कल्याण को मुख्यालय बनाकर उसमें आदिवासी परिसर समाहित करने की चर्चा छेड़ दी है। 

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