Sunday, October 21, 2012

रियल इस्टेट इंडस्ट्री में अहम रोल अदा करने वाले इन्वेस्टर आज पूरी प्रॉपर्टी मार्केट को अपनी मुट्ठी में जकड़े हुए हैं


महाराष्ट्र सरकार हाउजिंग इंडस्ट्री में छाई गंदगी को साफ करने व बिल्डरों पर लगाम कसने का भले ही कितना भी दावा कर ले, पर सचाई यह है कि यह सुधार लाने में कोसों पिछड़ा है। रियल इस्टेट इंडस्ट्री में अहम रोल अदा करने वाले इन्वेस्टर आज पूरी प्रॉपर्टी मार्केट को अपनी मुट्ठी में जकड़े हुए हैं। बिल्डरों के प्रॉजेक्ट के प्री-लॉन्च का रेट तय करने से लेकर बिल्डिंग के आखिरी फ्लैट के सेल होने तक का रेट इन्हीं इन्वेस्टरों की मर्जी से तय हो रहा है। चूंकि रियल इस्टेट इंडस्ट्री में पूरा खेल ब्लैक मनी का होता है सो यही इन्वेस्टर्स बिल्डरों की फंडिंग का मुख्य सोर्स रहे हैं। 

अत: कई दफा बिल्डरों को भी इनकी मर्जी के आगे झुकना पड़ता है। एक ब्रोकर ने एनबीटी को बताया, 'कई बिल्डर अपने अनबिके फ्लैटों को सेल करने के लिए दाम में कमी करना चाहते हैं, परंतु उसी प्रॉजेक्ट में 'बल्क-बुकिंग' करा चुके इन्वेस्टर्स के दबाव के चलते बिल्डर रेट कम नहीं कर पा रहे हैं। ब्रोकर के अनुसार, रियल इस्टेट मार्केट में साल 2003 के बाद जब से बूम आया है, तब से बिल्डर अपने प्रॉजेक्ट के सारे फैसले इन्हीं इन्वेस्टरों की मर्जी से लेते आ रहे हैं। नतीजा यह हुआ है कि आज शहर में लाखों लोग इसलिए घर नहीं खरीद पा रहे हैं कि उनके पास फ्लैटों को खरीदने की कूवत नहीं है, और इन्वेस्टरों के पास एक दर्जन से लेकर 20-25 फ्लैट वैसे ही खाली पड़े हुए हैं। 

रियल इस्टेट की नब्ज को जानने वाले जानकार कहते हैं कि आज सभी म्हाडा, एसआरए, सिडको या दूसरी सरकारी एजेंसियों से खरीदे गए फ्लैटों को दोबारा बेचने के लिए एक टाइम फिक्स(लॉक-इन पीरियड) है। अमूमन यहां खरीदे गए फ्लैटों को पांच साल तक बेचने की पाबंदी है, ताकि यहां घर सिर्फ जरूरतमंदों को ही मिले और इन्वेस्टर दूर रहें जबकि प्राइवेट बिल्डरों के प्रॉजेक्ट में दर्जनों फ्लैट खरीदकर इन्वेस्टर पूरी मार्केट को अपनी मुट्ठी में दबोचे हुए हैं। अनुमान लगाया गया है कि आज मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई में 25 करोड़ स्क्वेयर फुट के रेजिडेंशल और कमर्शल फ्लैट अनबिके पड़े हैं। इसमें एक चौथाई से ज्यादा फ्लैट इन्वेस्टरों के हैं। 

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