Monday, March 24, 2014

इस पेशे में कई भिखारी ऐसे भी हैं, जो अपनी मर्जी से हैं

पुलिस द्वारा चलाई गई मुहिम में 100 से अधिक भिखारी पकड़े गए थे। उस समय यह मुहिम कई सप्ताह तक चलाई गई थी। इसके चलते समूचे नवी मुंबई शहर से भिखारियों का पलायन हो गया था, फिर दो-तीन महीने बाद धीरे-धीरे भिखारियों के छोटे-छोटे समूह नवी मुंबई में वापस लौटने लगे थे। भिखारी मुक्त नवी मुंबई में दीवाली का जश्न मनाने वाले नागरिकों को इसके कुछ महीने बाद ही शहर के हर बड़े जंक्शन, बाजार, मंदिर, सिग्नल, रेलवे स्टेशनों, पार्किंग जोन्स और होटेलों आदि के बाहर आम नागरिकों का सामना एक बार फिर से भिखारियों के झुंड से शुरू हो गया। 
भिखारियों के झुंड से जब लोग परेशान हो गए, तो शिकायत पुलिस तक पहुंची। पुलिस ने कमर कसी और सीबीडी, वाशी व तुर्भे पुलिस ने अपने क्षेत्र से भिखारियों की धरपकड़ शुरू कर दी। इसके लिए पहले से ही चौकन्ने भिखारियों की टोली पलक झपकते ही गायब हो गई। फिर भी पुलिस की टीम ने दौड़ाकर 6 भिखारियों को धर दबोचा। पकड़े जाने के बाद इन्हें मुंबई स्थित बेगर्स होम भेज दिया गया। फिलहाल भिखारियों के खिलाफ पुलिस की यह कार्रवाई जारी रखने की बात कही जा रही है।
 
भिखारियों के संदर्भ में पूरे नवी मुंबई क्षेत्र का आंकलन करने के बाद पता चला कि दिखने में भिखारियों के झुंड भले ही बिखरे-बिखरे दिखें, पर इनका आपसी नेटवर्क बहुत चुस्त होता है। वाशी सेक्टर-17 में नवरत्न से हाइवे के बीच मिले एक भिखारी ने बिना नाम बताए जानकारी दी कि कई भिखारियों के पास उनके खुद के मोबाइल फोन होते हैं, जो वे जरूरत पड़ने पर ही स्विच ऑन करते हैं और आपसी संदेश देते हैं। इसके अलावा ये लोग उन दुकानों के पीसीओ फोन से शहर के अन्य इलाके में फोन कर देते हैं। या फिर ये सीधे बस या ऑटो आदि से भी शहर के एक कोने से दूसरे कोने में जाकर अपने साथियों को सतर्क कर देते हैं। तुर्भे के मन्नू भिखारी (असली या नकली नाम का पता नहीं) ने बताया कि शहर में आपसी सूचना देने के लिए एक घंटा का समय पर्याप्त होता है।
 
खानदानी भी हैं भिखारी
 रबाले में एक होटेल के बाहर बैठे एक अधेड़ उम्र चंदू नामक भिखारी ने बताया कि इस पेशे में तगड़ी कमाई के चलते वर्तमान भिखारी अपनी अगली पीढ़ी को भी अपने साथ शामिल कर लेते हैं। उसके मुताबिक वह खुद अपने दादा-दादी के साथ मानखुर्द और गोवंडी से लेकर कुर्ला और घाटकोपर तक भीख मांग चुका हैं। यही नहीं, वह अपने मां-बाप (अब दिवंगत) के साथ भी नवी मुंबई में पिछले दो दशक से भीख मांग रहा है। उसके दो बच्चे हैं और वे भी अब इसी पेशे में हैं। हर नई बस्ती के आबाद होते ही भिखारियों का एक समूह उधर 'शिफ्ट' हो जाता है। इस पेशे में कई भिखारी ऐसे भी हैं, जो अपनी मर्जी से इस पेशे में बने हुए हैं। 
किसी
 भी एक भिखारी की औसत दैनिक कमाई निम्नतम 300 रुपये से 500 रुपये या इससे अधिक की होती है।किसी धार्मिक दिन विशेष पर यह कमाई करीब 800-1000 तक भी हो जाती है। सानपाडा स्टेशन परिसर कीएक भिखारिन ने बताया कि देवी - देवता वाले विशेष दिनों में उनके मंदिरों के बाहर तगड़ी भीख मिल जाती है।वाशी में एक व्यापारी रामअवतार जोशी ने बताया कि इन भिखारियों की मासिक कमाई 10 से 15 हजार रुपये या अधिक  होती है। 
बहुत
 मान मनौव्वल के बाद कोपरखैरणे में बिग्गू नामक एक भिखारी ने एनबीटी को बताया कि अधिकांशभिखारी महाराष्ट्र , कर्नाटक , मध्यप्रदेश  अन्य पड़ोसी राज्यों के होते हैं। ये भिखारी अपनी कमाई का 80फीसदी हिस्सा मनीऑर्डर के जरिए अपने गांव भेज देते हैं। कइयों का कहना था कि भिखारी अपनी रकम कोअपने अंदरूनी कपड़ों में छिपाए रखते हैं। एपीएमसी मंडी में भीख मांगने वाले एक अन्य भिखारी के मुताबिककई भिखारी घर - मकान वाले होते हैं  उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं। इन भिखारियों के अपने बैंकअकाउंट होते हैं। 
नवी
 मुंबई में कई बच्चे भीख मांगते हुए दिख जाते हैं। एनबीटी ने इनसे कई बार पूछने की कोशिश की , उन्हें 50से 100 रुपये तक का लालच दिया , पर उनकी आंखों में मौजूद खौफ को पढ़ने के अलावा कोई जानकारी नहींमिल सकी। रुक कर पूछने की शुरुआत होते ही ये बच्चे सरपट भाग जाते थे। सिद्दीलाल नामक एक अपंग भिखारीने बताया कि बच्चों से भीख मंगवाने वाले नवी मुंबई में कम और मुंबई में बहुत अधिक हैं। हालांकि , इसकी पुष्टिनहीं हो सकी कि जो बच्चे सड़कों पर भीख मांगते हुए दिखते हैं , वे अपह्रत हुए बच्चे हैं , या फिर खानदानीभिखमंगे बच्चे  

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