Tuesday, September 22, 2009

अपेक्षा के अनुरूप मच्छी न मिलने से बाजारों में इसकी कीमतें दुगुनी हो गई

मछली के शौकीनों के लिये यह बुरी खबर है। नारली पुर्णिमा के दिन से अपनी नावों को लेकर समुद्र में गए मच्छीमारों को बेहद कम मात्रा में मछलियां मिल रही हैं। इससे वे घोर निराशा में हैं। मच्छीमारी शुरू हुए करीब डेढ़ महीने हो चुके है, पर अभी तक अपेक्षा के अनुरूप मच्छी न मिलने से बाजारों में इसकी कीमतें दुगुनी हो गई हैं। नवी मुम्बई स्थित हमार निज संवाददाता के मुताबिक उरण, रायगढ़ व नवी मुम्बई के मच्छीमारों के संगठन के अनुसार वर्ष में बरसात के चार महीनों को छोड़कर मछली की कीमतें चिकन व मटन से कम ही रहती है। मुम्बई, ठाणे व रायगढ के विभिन्न ठिकानों से मारकर लाई गई मछली की थोक बिक्री मुम्बई के भाऊच्या धक्का पर होलसेल भाव से होती है। पर महंगी हो जाने से मछली का कम उठाव यानी बिक्री में कमी होने से मच्छीमार खासे परेशान हैं। उनकी लागत तक नहीं निकल रही है। इन दिनों खुले बाजार में पामफलेट 300 से 400 रुपए, जिताड़ा 300 से 350 रुपए, हलवा 300 रुपए, सुरमई 300 से 400 रुपए, रोमच्छी 90 रुपए कतला 100 से 150 रुपए कि तथा केकड़ा 250 रुपए दर्जन बिक रहे हैं जबकि बकरे का गोश्त 200 रुपए, ब्रायलर चिकन 70 से 80 रुपए तथा देशी मुर्गी 125 से 150 रुपए किलो दर से बिक रही है।

No comments:

Post a Comment