Wednesday, July 22, 2015

याकूब की फांसी का दिन तय

आतंकवाद निरोधी टाडा अदालत के फैसलों में ट्रैजेडी का एक रंग है। पहले अदालत ने रहीन मेमन को आजाद कर दिया और अब उसे विधवा होने की सजा दी है।
रहीन, याकूब मेमन की बीवी हैं। उनका कहना है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के बाद से ही वह परेशान हैं। वह अभी तक इस फैसले को गले से नीचे नहीं उतार पा रही हैं। उन्होंने कभी इस तरह के फैसले की कल्पना भी नहीं की थी। रहीन को सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक बुरे और डरावने सपने की तरह लग रहा है।

याकूब मेमन को 27 जुलाई, 2007 को 1993 मुंबई बम धमाकों में शामिल होने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी माफी याचिका खारिज करते हुए उसकी फांसी का दिन 30 जुलाई को तय किया है।
पिछले कुछ दिनों से रहीन का यही हाल है। जब से याकूब की माफी याचिका पर सुनवाई की तारीख घोषित की गई थी, तब से ही रहीन परेशान थीं। हालांकि अब फैसला आ जाने के बाद वह कह रही हैं कि वह अपने पति के लिए लड़ेंगी। उन्होंने कहा कि उन्हें अल्लाह के साथ-साथ देश के कानून पर भी पूरा भरोसा है। और सबसे बढ़कर, रहीन का मानना है कि याकूब निर्दोष हैं। उनका कहना है कि याकूब ने अपनी बेटी की कसम खाकर कहा था कि वह बेगुनाह हैं। रहीन भरोसा दिलाती हैं कि अगर याकूब सच में दोषी होते, तो वह बहुत पहले ही उसका साथ छोड़ चुकी होतीं। 


रहीन को सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि याकूब खुद लौटकर कानूनी प्रक्रिया का सामना करने वापस लौटा था, लेकिन फिर भी उसे फांसी की सजा सुना दी गई है। उनका सवाल है कि अगर याकूब ना लौटा होता तो भी क्या उसके साथ यह सब होता।

'
क्या हम आदिम जमाने में रह रहे हैं? सिर्फ समाज के लिए ही क्या एक भाई को 14 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रखना और अपने भाई के गुनाहों के लिए उसे फांसी दे देना सही है? याकूब को फांसी इसलिए हो रही है क्योंकि उसके नाम के साथ मेमन जुड़ा है। इस सरनेम ने उनको तबाह कर दिया,' रहीन ने कहा।
पहली बार मीडिया से बात करते हुए (आज तक मेमन परिवार के किसी भी व्यक्ति ने मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया है), रहीन का कहना है कि उन्होंने पूरी कानूनी प्रक्रिया पर बहुत भरोसा किया था। वह कहती हैं कि याकूब हमेशा उनसे कहता था कि वह जेल से बाहर आ जाएगा क्योंकि वह बेगुनाह है। उनका सवाल है कि अगर याकूब दोषी होता तो वह लौटकर भारत क्यों आता और क्यों खुद को कानून के हवाले करता।
रहीन कहती हैं कि टाइगर और अयूब मेमन लौटकर नहीं आए क्योंकि वह जानते हैं कि उन्हें सजा जरूर होगी। मालूम हो कि टाइगर और अयूब को 1993 के मुंबई धमाकों का मुख्य साजिशकर्ता माना जाता है। दोनों फरार हैं।
यह पूछे जाने पर कि आत्मसमर्पण के पहले क्या उनका सरकार के साथ कोई समझौता हुआ था, रहीन ने कहा कि वह लोग इसलिए लौटकर आए क्योंकि करांची में उन्हें नजरबंद रखा गया था। उन्हें वहां इस तरह रहना पसंद नहीं था। वह भारत को याद करते थे, अपना घर याद करते थे और बिना किसी गलती के गुनहगार बनकर शर्मिंदगी के साथ नहीं जीना चाहते थे। वह कहती हैं कि करांची में रहते हुए वह अक्सर याकूब से कहती थीं कि उन्हें माहिम की साड़ी पहनी हुई मछुवारनों को देखने जैसी छोटी-छोटी बातें याद आती हैं।
यह पूछे जाने पर कि आत्मसमर्पण के लिए उन्होंने एक साल तक इंतजार क्यों किया, रहीन बताती हैं कि वह ससही समय का इंतजार कर रहे थे। उनकी बेटी पैदा होने वाली थी जिसके कारण उन्होंने जल्द सबकुछ निपटाने का फैसला किया। वह कहती हैं कि असल में याकूब खुद ही 19 जुलाई 1994 को भारत लौट आया था, फिर भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने का दावा किया।

वह बताती हैं कि याकूब को अपनी बेगुनाही पर भरोसा था। उसे सीबीआई पर भी यकीन था। रहीन कहती हैं कि याकूब की गलती यह थी कि उसने कभी अबू सलेम की तरह लिखित तौर पर कोई शर्त नहीं रखी और न ही आश्वासन लिया।
यह पूछे जाने पर कि 12 मार्च 1993 को हुए धमाकों से केवल 2 दिन पहले ही क्यों उनका पूरा परिवार भारत छोड़ कर चला गया, रहीन बताती हैं कि उनके सास-ससुर और टाइगर-अयूब 10 मार्च को ही चले गए थे। अयूब ने दुबई से याकूब को फोन किया और कहा कि याकूब और रहीन भी उन्हीं के साथ ईद मनाएं। रहीन कहती हैं कि भारत से जाने का यही कारण था। वह कहती हैं कि वे लोग अक्सर दुबई जाते रहते थे। इसमें कोई नई बात नहीं है। वह कहती हैं कि एक महीने दुबई में रहने के बाद ही टाइगर के कहने पर वे लोग करांची चले गए थे।
यह पूछे जाने पर कि टाइगर का बर्ताव घर पर कैसा था, रहीन बताती हैं कि टाइगर मुश्किल ही घर पर रहता था। घर की 5वीं मंजिल पर वह अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था। याकूब और रहीन 6ठी मंजिल पर याकूब के माता-पिता के साथ रहते थे। रहीन, टाइगर के बारे में बात करने से मना कर देती हैं। रहीन बताती हैं कि टाइगर ने अपने पिता की मौत के बाद फोन तक नहीं किया।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उनके पास अन्य गवाहों के बयान के बाद सबूत है कि मुस्लिम युवाओं को हथियार की ट्रेनिंग के लिए भेजने के लिए टिकट लेकर आया था। अदालत ने माना कि याकूब ने अकाउंट से लेकर पैसे के लेन-देन का पूरा काम संभाला।
रहीन मानती हैं कि याकूब को टाइगर के स्मगलिंग बिजनस के बारे में पता था। वह कहती हैं कि पता होने के बावजूद याकूब कभी टाइगर के किसी दोस्त या परिचित के साथ बात नहीं करता था। वह कहती हैं कि याकूब के कई हिंदू दोस्त थे। अगर उसे टाइगर की साजिश के बारे में पता होता तो उसने सबसे पहले पुलिस को खबर दी होती।
यह पूछे जाने पर की फांसी का फैसला आने पर याकूब ने क्या कहा, रहीन बताती हैं कि याकूब ने जज को माफ कर दिया है क्योंकि वह नफरत के सिलसिले को खत्म करना चाहता है। रहीन कहती हैं कि याकूब लड़ते-लड़ते थक चुका है।
30
जुलाई को याकूब की फांसी का दिन तय हो चुका है, लेकिन अभी भी रहीन को उम्मीद है कि वह सही-सलामत जेल से बाहर आ जाएगा।

No comments:

Post a Comment