Thursday, September 25, 2014

साहब अडिग हैं, दाल नहीं गलेगी

शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की 'आक्रामक शैली' के आगे बीजेपी नेताओं की एक नहीं चल पाई। महाराष्ट्र की 288 सीटों में आधे की हिस्सेदारी मांग रही बीजेपी अपनी मंशा में सफल नहीं हो पाई है। पिछले बार के विधानसभा चुनाव की तुलना में पांच-सात ज्यादा सीटें ही उसके हिस्से आने की बात कही जा रही हैं। शिवसेना 150 सीटों के अपने आंकड़े को किसी हालत में कम करने को तैयार नहीं हुई। राजनीतिक हलकों में यह सवाल पूछा जा रहा है कि एक पखवाड़े की तनातनी क्या वाकई बीजेपी कुछ हासिल कर पाई है? 
शिवसेना भवन में पार्टी प्रत्याशियों को अधिकृत ए-बी फार्म बांटने का सिलसिला बुधवार को ही शुरू कर दिया गया। शिवसेना, बीजेपी और साथी दलों के बीच सीटों का बंटवारा देर रात तक तय नहीं पाया था। सुबह चुनिंदा गालियां देकर होटल सोफीटेल से निकले छोटे दलों के नेता शाम तक फिर चर्चा के लिए उपस्थित हो चुके थे। इस बीच, एकनाथ शिंदे, पूर्व महापौर सुनील प्रभू और दूसरे प्रमुख नेता खुद को शिवसेना उम्मीदवार घोषित करने वाला अधिकृत पत्र प्राप्त कर रहे थे।
शिवसेना के दूसरे श्रेणी के नेता बीजेपी और साथी दलों से बातचीत में मशगूल थे और ठाकरे परिवार तुलजा भवानी के दर्शन लेकर प्रचार शुरू करने की तैयारी में जुटा था। संदेश बहुत साफ था, समझौता हो या न हो शिवसेना मैदान में उतरने जा रही है। सूत्रों के अनुसार, अधिकांश उम्मीदवारों को गुरुवार को ही उम्मीदवारी का नामांकन दायर करने के निर्देश दिए गए हैं।
 
उद्धव ठाकरे को अच्छी तरह पता था कि महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर है। उपचुनाव में बीजेपी का ग्राफ गिरा और मोदी की लहर कमजोर पड़ने की चर्चा चल पड़ी है। लोकसभा चुनाव में इतनी भारी जीत के ठीक बाद कहीं महाराष्ट्र के चुनाव में गड़बड़ी हुई तो मोदी का जादू खत्म होने का शोर उठने में देर नहीं लगेगी। शिवसेना ने बीजेपी की इसी कमजोर नस को पकड़ लिया। लंबे समय ठोस बातचीत ही नहीं हुई। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की 'मातोश्री' यात्रा के बाद चर्चा शुरू भी हुई तो उद्धव ठाकरे के इकतरफा विश्वास के आगे बार-बार अड़चन में आई है।
 
छोटे दलों की नाराजगी चरम पर पहुंची, उद्धव टस से मस नहीं हुए। शिवसेना को 'मिशन 150' का लक्ष्य देकर उन्होंने एक तरह से अपनी अंतिम सीमा पहले ही निर्धारित कर दी थी। 144 सीटों की शुरुआती मांग बीजेपी को ही हर बार घटानी पड़ी है। 119 सीटों के पुराने आंकड़े में सात सीटें बीजेपी को देने की पेशकश शिवसेना पहले ही कर चुकी थी। समाचार लिखे जाने तक शिवसेना-बीजेपी और साथी दलों के बीच अंतिम आंकड़ा तय नहीं हो पाया था। अगर वाकई 'महायुति' के समझौते ने आकार लिया और 150:120:18 के फार्मूले में बदलाव हुआ तो भी 'त्याग' बीजेपी को करना होगा। अब तक का कहानी यही बयान करती है।
बीजेपी के आगे उद्धव ठाकरे जिस तरह अपनी बात रखने में सफल रहे हैं, इससे तो यही संकेत मिलता है कि चुनाव के बाद भी वे बीजेपी की शर्तें नहीं मानेंगे। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने खुद को महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रॉजेक्ट कर दिया है। बीजेपी ने यह आस लगा रखी थी कि चुनाव में शिवसेना से ज्यादा सीटें पाने पर मुख्यमंत्री उसका होगा। यह उद्धव का दबाव ही है कि बीजेपी मुख्यमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित करने से कतरा रही है।
राजनीतिक गलियारों में कयास लगाया जा रहा है कि बीजेपी को अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए शिवसेना के समर्थन की जरूरत पड़ी, तो इसे पाना आसान नहीं होगा। शरद पवार की एनसीपी, राज ठाकरे की एमएनएस, छोटे-मोटे दलों और निर्दलीयों की आस पर ही बहुमत के लिए जरूरी 144 सीटों का जुगाड़ करना पड़ेगा। वरना बीजेपी के ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद शिवसेना शायद इस बार न माने। बहुमत का आंकड़ा दूर रह गया तो उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के अलावा शायद कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। मातोश्री के सूत्रों का तो मत है कि 'साहेब ठाम आहेत, डाल शिजनार नाही

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