Monday, September 29, 2014

महालक्ष्मी , महासरस्वती और महाकाली

शीतल वायु और लहरों का शोर मंदिर के घंटनाद से मिलकर कानों तक पहुंचता है और मन को भीतर तक तृप्त कर जाता है। महालक्ष्मी मंदिर के श्रद्धालुओं की लंबी कतारों पर इन दिनों अतिरिक्त सीसीटीवी और बांब डिटेक्शन व डॉग स्क्वाड्स के साथ पांच सौ वर्दीधारी पुलिसवालों और चार सौ सिक्युरिटी ग्रुप और एनजीओ के कार्यकर्ताओं का पहरा है। तीन ओर समुद्र से घिरे, एक ही रास्ते वाले मंदिर तक पहुंचना हो तो टेढ़ी-बिड़ंगी गलियों, भिखारियों, जबर्दस्ती गले पड़ जाने वाले दुकानदारों व जेबकतरों जैसी बाधाओं को पार करना पड़ेगा। मंदिर के चीफ एग्जेक्यूटिव ऑफिसर शरदचंद्र वी. पाध्ये बताते हैं, 'नवरात्र के इन दस दिनों में कम से कम दस लाख श्रद्धालु जरूर यहां आते होंगे।' मंगल, शुक्र, रविवार और छुट्टियों के दिन यहां लंबी कतारें लगती हैं। विजय स्वीट के रामगोपाल ने फरमाया, 'स्टील के जंगलों और बाहर ढाई-तीन घंटे पंक्तिबद्ध रहने के बाद ही यह सौभाग्य मिल पाता है।' चैत्र व मौजूदा अश्विन नवरात्र के गरबे वाले और दीवाली के आने वाले दिनों और मार्गशीष मास में-महालक्ष्मी के आस-पास किसी भी वक्त आपको ट्रैफिक पुलिस की जहमत बढ़ाते हुए सैकड़ों वाहन पार्क मिल जाएंगे। 
नकद व अन्य चढ़त के लिहाज से महालक्ष्मी सिद्धि विनायक, बाबुलनाथ व मुंबादेवी के साथ शहर के सबसे कमाऊ मंदिरों में से है। इसके 12-13 करोड़ रुपये के वार्षिक चढ़ावे का बड़ा हिस्सा पांच सदस्यीय ट्रस्टी बोर्ड हर वर्ष चुनिंदा शैक्षिक, धार्मिक, चैकित्सिक संस्थाओं, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों, अंध-मूक-वधिर सहायता संगठनों, विकलांगों, मानसिक रूप से बाधितों व अन्य एजीओ को अनुदान में देता है। जरूरतमंद मरीजों के लिए तीन करोड़ और जरूरतमंद मेधावी छात्रों को दो करोड़ रुपये की सालाना मदद और वजीफे व हिंदू धर्म पर पुस्तकों के हिंदी-मराठी-गुजराती अनुवाद के लिए अनुदान और अकाल व प्राकृतिक आपदा जैसे समय मदद भी। मंदिर का अपना चिकित्सालय यूनिट है। डेंटल क्लिनिक, पैथ लैब, डायलिसिस सेंटर जैसी उसकी योजनाएं लालफीताशाही के जाल फंसी हैं। 
बॉम्बे गजेटियर्स में मुंबई की अधिष्ठात्री शक्ति स्वरूपा के इस विख्यात मंदिर की निर्माण अवधि 1761 से लेकर 1771 के बीच मानी गई है। द्वीपों के बीच बसी मुंबई में यह मंदिर एक द्वीपनुमा पहाड़ी पर बसा था। गिरगांव-मलबार हिल से वर्ली को जोड़कर वर्ली कॉजवे बनाने का ठेका ब्रिटिश सरकार ने रामजी शिवजी प्रभु नामक कंट्रैक्टर को दिया। प्रभु की टीम दिन में जो कुछ बनाती रात को आए ज्वार में बह जाया करता। एक दिन विलायत से आए इंजिनियर ने भी हाथ ऊंचे कर दिए। तय था कि योजना अब त्याग दी जाएगी, तभी एक रात प्रभु को स्वप्न में महालक्ष्मी, महासरस्वती व महाकाली के दर्शन हुए। आदेश मिला, 'हम समुद्र में पड़ी हैं। हमें वहां निकालकर यहीं एक मंदिर बनाकर प्रतिष्ठापित करो।' आतताइयों के हमलों से डरकर समुद्र में विसर्जित कर दी गई इन प्रतिमाओं को जब वापस निकाला गया, तो तूफानी लहरों के कारण महीनों से असफल हो रहा निर्माण पूरा हो गया। 80 हजार रुपये की लागत से पहाड़ी पर मंदिर बना जिस पर प्रसन्न गवर्नर लॉर्ड हॉर्नबी ने प्रभु को डेढ़ एकड़ का यह पूरा परिसर ही भेंट कर दिया। इधर, वर्षों से प्रभु परिवार के बारे में कोई सूचना नहीं है। जिन मछुआरों ने समुद्र से तीनों प्रतिमाओं का उद्धार किया उनकी 13वीं पीढ़ियां इस वक्त मौजूद हैं, जिनकी आजीविका के लिए कुछ दुकानें निर्धारित की गई हैं। 
देश का यह संभवतर् अकेला ऐसा मंदिर है जहां महालक्ष्मी , महासरस्वती और महाकाली - ये तीनों जागृत ज्योतिस्वरूपाएंएक साथ विद्यमान हों। दोनों नवरात्रों में उदीयमान सूर्य की रश्मियां सीधे उन्हें स्नान कराती हैं। गर्भगृह का रजत सिंहासन ,ध्वजस्तंभ , सभामंडप , मुख्य द्वार और बाहर गणपति , विठ्ठल - रुक्मिणी और जय - विजय की प्रतिमाएं और श्रीयंत्र ,सन्मुख स्तंभों पर हाथी और मोर की आकृतियां - मंदिर की अन्य विशेषताएं हैं। बलि , मद्य और तांत्रिक पूजाएं  बहुत वर्षोंसे बंद हैं। पिछले कई दशकों से यह केवल वेदोक्त और षोडशोपचार पूजाओं का केंद्र है। लॉइव डेबिट कॉर्ड स्वाइप डोनेशन , ऑन लाइन पूजा बुकिंग के साथ नए अवतार में। 1950 में , जबसे यहांचोरी हुई है , भगवती के बहुमूल्य आभूषण केवल दुर्लभ अवसरों पर ही निकाले जाते हैं। सिर पर भारी  भरकम चोपड़े लादेबहुत सेठिए विष्णुप्रिया की दिव्य दृष्टि से छुआ कर उन्हें पारस बनाने के लिए कभी भी दिख जाएंगे। कार्तिक पूर्णमासीअन्नकूट संभवत : यहां का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है। 

अक्सर ऐसा होता जब मंदिरों में दर्शनों के वक्त आने वाला , भाटे के वक्त सागर की छाती पर उभरी सड़क पर पांव  पांवठीक सामने आठ सौ साल पुरानी हाजी अली दरगाह को मत्था नवाने भी जाए और हाजी अली का भक्त महालक्ष्मी।फूलमालाओं और प्रसाद विक्रेताओं की ' आओ सेठ ' की पुकारों के बीच सुंदर सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त सबसे पहले भव्यकंगूरों के दर्शन होते हैं। सामने दो दीपाधार और अगल - बगल दर्शन के बाद थोड़ा सुस्ताने और टेक लगाने की जगहें , थोड़ानीचे गणपति और हनुमान के दो छोटे मंदिर और हैं। कुछ सीढ़ियां उतरकर पहले समुद्र की इठलाती लहरों के बीच जा सकतेथे। यह इसे घेर दिया गया है। मंदिर का वर्तमान रूप जो भी दिखता है वह 1978 से लगातार चल रहे सुधार कार्यों कानतीजा है। 

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